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पश्चिमी भारत की यात्रा ___ जैनों, उनकी परम्परामों, पट्टावली और माधुनिक दशा के विषय में जो थोड़ा-बहुत मुझे कहना है वह गिरिनार के पवित्र पर्वत की यात्रा तक सुरक्षित रख रहा हूँ। इसके पश्चात् भी मेरी टिप्पणी बहुत ही संक्षिप्त और पूर्व पृष्ठों में वणित सन्दर्भो से स्वतन्त्र होगी; मेरे मित्र मेजर माइल्स ने इस विषय में बहुत कुछ और बहुत भली प्रकार से प्रकाश डाला है।' वे मुझ से बहुत-कुछ अपेक्षा भी रखते हैं, परन्तु मैं समझता हूँ कि बहुत विस्तार से लिखने पर केवल उनको कही हुई बातों की आवृत्ति मात्र करना होगा। हमारी जानकारी के स्रोत, विचारधारा और निष्कर्षों पर पहुँचने की प्रणाली समान है अतः निश्चय ही नतीजे एक होंगे। इसलिए मैं केवल उन्हीं बिन्दुओं तक अपने विचार सीमित रखूगा जो उनके अनुसन्धान में पर्याप्त अवधान नहीं प्राप्त कर सके हैं ।
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५ देखिए 'ट्रांजेक्शन्स् माफ वो रायल एशियाटिक सोसाइटी, वॉल्यूम ३, पृष्ठ ३३५ ।
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