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________________ प्रकरण :१४, पालीताना के स्मारक [३१३ मुकाम में पर्याप्त तथ्य एकत्रित न कर सका। स्पष्ट है कि ऋणदाता दस वर्ष का ठेका होने के कारण भूमि-सुधार और कृषकों की समृद्धि में रुचि लेता था। परन्तु, यह भय और अत्याचार का राज्य बहुत लम्बे समय तक चला था और अब भी आन्तरिक नीति इतनो अस्थिर है कि उन्हें अभी यह सीखना बाकी है कि उनके निजी हित किस सीमा तक जनहित पर अंवलम्बित हैं। पहले गोहिल राजाओं द्वारा लगाया हुआ यात्री-कर स्थिति और यात्रा की दूरी के आधार पर एक रुपये से पांच रुपये प्रति व्यक्ति तक था किन्तु अब मुझे बताया गया कि वह बिना भेदभाव के एक रुपया कर दिया गया है। परन्तु, यदि यह मान लिया जाय कि सङ्घों में धनवान सदा ही गरीबों का कर चुकाते आये हैं तो इस हिसाब से भी दस से बीस हजार तक की आमद होनी चाहिये और इससे इस नगर की पुनः वृद्धि होनी चाहिये । इस समय आसपास के प्रदेशों में खेतीबाड़ी कम होती है, यद्यपि मध्य भारत की तरह यहाँ को मिट्टी उपजाऊ है जिसमें चिकनी बुकनी की अधिकता रहती है और जो 'माल' नाम से प्रसिद्ध है तथा जिसके कारण उस भू-भाग का नाम मालवा पड़ा है। हमें पालीताना से, स्मारक-शिलानों अथवा 'पालियों के विषय में कुछ कहे बिना विदा नहीं होना चाहिये। नगर के पश्चिमी द्वार पर एवं अन्य स्थानों पर पवित्र पहाड़ी को तलहटो तक ऐसे पत्थरों के बहुत से समूह लगे हुए हैं । सौराष्ट्र के वीरकाल के स्मारक ये पत्थर उत्तरी भारत के यात्री को चकित किये बिना नहीं रहते, विशेषतः यदि वह राजपूताना में न घूमा हो जहां इन्हें 'जूझार' (पालिया का पर्याय) कहते हैं और जहाँ ये बहुत अधिक संख्या में उन स्थानों का सूचन करते हैं, जहाँ वोरों ने अपने स्वत्वों के लिए जूझते हुए प्राण दे दिये थे। परन्तु, यहाँ जो पत्थर गाड़े गए हैं वे अंग्रेजी चर्च के कब्रिस्तान के समान बहुत मोटे-मोटे हैं । इन छोटे-छोटे पत्थरों पर खुदे हुए संक्षिप्त और सरल इतिहास प्रायः ध्यान देने योग्य होते हैं; यदि उस यात्री को इनसे किसी एतिहासिक तथ्य का ज्ञान प्राप्त करने में सफलता नहीं मिलती है तो भी उसे किसी ऐसी जाति के रीति-रिवाजों और रहन-सहन के बारे में तो उल्लेख मिल ही जाता है, जो उसकी जानकारी से भिन्न (नवीन) होता है। यहां तक कि लेख के अभाव में इन पत्थरों पर सामान्यतया खोदी हुई सन्दर्भमय प्राकृतियों से भी विनोद के प्रतिरिक्त बहुत कुछ और मिल जाता है, जैसे उस व्यक्ति का सामाजिक स्तर। उदाहरण के लिए, पास हो के खैरवा गांव में हत व्यक्ति की मूर्ति रथ में दिखाई गई है, जो अपने आप में प्राचीनता की घोषणा कर रही है, क्योंकि युद्धों में रयों का उपयोग बहुत समय पहले ही बन चुका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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