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प्रकरण - १४; प्रादिनाथ को समृद्धि और प्राभूषण [ ३०७ जवाहरात से खूब भरा हुआ है और इस शान्तिपूर्ण 'सतयुग' अथवा स्वर्णयुग में शीघ्र ही इसकी और भी वृद्धि हो जायगी। पिछले पचास वर्षों से जिन काठी लुटेरों की टुकड़ियाँ धनी श्रावकों और सामान्य जैन गृहस्थों को अपने इस 'पेलस्टाइन' को यात्रा करने से रोकती थीं उनका अब नाम मात्र शेष रह गया है; अन्यथा पहले ऐसा होता था कि कभी संयोग से ही किसी यात्री को किसी के किले में से इस पवित्र चट्टान की झांकी मात्र लेकर अपनी यात्रा पूरी करनी पड़ती थी और वहां पर मुक्ति-धन चुकाने तक सड़ना पड़ता था। परन्तु यदि प्राज की तरह ही यह छोटा-सा प्राचीन सौरों का राज्य पैतृक भावना के साथ शासित होता रहा तो अवश्य ही इसके उपजाऊ मैदान, सोरोस (Ceres) के वरदान से, पुनः समद्ध दिखाई देने लगेंगे और आदिनाथ के यात्रियों को यातना देने वाले लटेरे कहीं भी दिखाई न देंगे। विशेष मेलों के अवसर पर भारत के प्रत्येक भाग से असंख्य यात्री इस प्रायद्वीप में आते हैं। इन यात्रियों के झण्डों को 'संघ' कहते हैं और कभी-कभी तो एक एक संघ में बीस-बीस हजार यात्री होते हैं। सामान्यतया कोई धनिक व्यापारी अपने क्षेत्र के यात्रियों का प्रमुख संघपति होता है और अपने निर्धन किन्तु धर्मात्मा धर्मबन्धुओं का इस पवित्र पर्वत की यात्रा में आते-जाते समय का खाने-खर्चे का व्यय अपने पास से देता है-यह एक प्रकार का पण्य है, जिसका सुफल अवश्य मिलता है। ऐसे ही अवसरों पर आदिनाथ की सम्पत्ति का प्रदर्शन होता है और उसकी वृद्धि भी होती है क्योंकि प्रत्येक यात्री अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ भेंट अवश्य चढ़ाता है। उस समय प्रतिमा पर भारी-भारी सोने की शृंखलाएं और चांदी के बाजूबन्ध चढ़ाए जाते हैं । इनके अतिरिक्त प्रादिनाथ की तिजोरी में सोना केतो बह-बह कर पाता ही रहता है। हाल ही में, हेमा भाई नामक अहमदाबाद के धनिक व्यापारी ने बड़े-बडे पन्नों (नीलम) से जड़ा हुआ सोने का भारी मुकुट बनवाया है जिसका मूल्य ३५०० पाउण्ड के बराबर आंका जाता है। आदिनाथ के मस्तक पर सदा ही एक मुकुट रहता है, जो अवसर के अनुकूल मूल्य का होता है-जिस समय मैंने दर्शन किए उस समय एक सादा सोने चाँदी का गंगा-जमुनी गोल मुकुट था।
किसी पाश्चात्य फिरंगी यात्री के लिए सब से अधिक आकर्षण की बात यह है कि ऐसे सडों के अवसर पर प्राचार्यों और अन्य जैन विद्वानों के विचारार्थ
' ग्रीक देवशास्त्र के अनुसार बनस्पति और शस्य की देवता। ऑलिम्पस पर्वत पर उसका
निवास माना गया है।
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