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________________ ३०८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा एवं सम्मानार्थ साहित्यिक निधियाँ प्रस्तुत की जाती हैं। ऐसे उत्सवों में कार्तिक को पञ्चमी का उत्सव सबसे अधिक प्रसिद्ध है, जिसका नाम 'ज्ञानपञ्चमी' ही 'ज्ञान' का द्योतक है; उस दिन समस्त भारत में जैन ग्रन्थ-भण्डारों के ग्रन्थ गम्भीरतापूर्वक बाहर धूप में निकाले जाते हैं, उनको साफ किया जाता है और फिर उनका पूजा करके वापस रख दिया जाता है। आदिनाथ का ज्ञान-भण्डार एवं भौतिक वस्तु-भण्डार (खजाना) उनकी स्वयं की सुरक्षा में मूर्ति के पास ही अवस्थित है। पालीताना-शत्रुञ्जय की तलहटी में कुछ मीलों के फेर में समस्त पृथ्वी पवित्र मानी जाती है और 'पल्लि' का निवास तो इस पर्वत से सटा हुआ ही है । 'इस नाम में क्या रहस्य है ?' में बहुत दिनों से दृढ़ आशा लिए बैठा था कि जिस भूमि पर पल्लि ने अपने यश और धर्म का प्रसार किया था वहाँ मुझे इस इण्डो-सीथिया की गलाती (Galatae) अथवा केट्टी (Kettre) नामक भ्रमणशोल जाति के विषय में चिरप्रतीक्षित सूचना मिलेगी, परन्तु पुरातत्त्वज्ञ पाठक मेरी घोर निराशा का अनुमान लगाएं जब प्रमाण के रूप में मुझे ऐसी शब्द-व्युत्पत्ति बताई गई जो केवल आधारभूत कल्पना को नष्ट करने वाली ही नहीं थी अपितु इतनी भद्दी ओर अशास्त्रीय थी कि पालोताना, शत्रुञ्जय, आदिनाथ और उनके शिष्यों के विषय में जो मेरा उत्साह था उस पर पानी फेर दिया । मिस्र के 'फिलातीनों अथवा पूर्व इटली' निवासी पेलों (Pales) के साथ कोई साम्य बताने के बजाय मुझे पादलिप्त नामक एक महातान्त्रिक का नाम सुनाया गया, जो अपने निवास-स्थान भगकच्छ (जिसको ग्रीक लोग Barygaza कहते थे और जो आजकल भड़ोंच कहलाता है) से आदिनाथ पर्वत तक आकाश मार्ग से यात्राएं किया करता था। इस विद्वान का यह नाम उड़ान के लिए तैयारी करते समय पैर के तलुओं पर एक विशेष प्रकार का लेप प्रयुक्त करने के कारण पड़ा था। इस प्रकार के माहात्म्य की प्रामाणिकता में विश्वास करने में हम मजबूर हैं। इसी नामकरण को ले लीजिए, विद्वान् प्राचार्यों ने जो कुछ इसकी व्याख्या 'एट रिया इटली का एक जिला है, जो हालकल टस्कनी (Tuscany) नाम से विदित है। रोम (Rome) के अभ्युदय से पूर्व यहां ऐसी सुसभ्य जातियां निवास करती थीं जिनकी महान् सभ्यता के चिन्ह पाये जाते हैं। अवश्य ही रोमी सभ्यता पर उनका प्रभाव पड़ा था। कुराई के काम और संगतराशी की कारीगरी से युक्त गुम्बदें तथा फूलदानों पर चित्रकारी और अन्य बर्तनों के कलात्मक नमूने इसके प्रमाण हैं । एट्र स्कन लोग संगीत कला से गी सुपरिचित थे ।-N.S.E. p. 462 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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