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________________ प्रकरण - १४; हेंगा पोर [ ३०५ परम्परा और ऐतिहासिक स्फुट संसूचन के लिए अधिक अवकाश और योग्य मार्गदर्शन में शोध आवश्यक है, जिसकी में अपनी इस अल्पकालीन यात्रा के अवसर पर आपको आशा नहीं दिला सकता; परन्तु, मैं अन्य ( गवेषकों) को अधिक गहराई से शोध करने का अनुरोध करूंगा और कहूँगा कि उदाहरण के रूप में मैंने जो कुछ किया है उस पर विचार करें और पता लगाएं कि इन अद्भुत और मनोरञ्जक धर्मावलम्बियों के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त होने पर क्या-क्या परिणाम निकल सकते हैं ? इस पवित्र अहाते के ठीक उत्तर में, दीवार में बनी हुई खिड़की में होकर हम सब से ऊंचे स्थान से बाहर आए और जल्दी ही मुसलमानी सहिष्णुता के प्रत्यक्ष चिह्न स्वरूप 'हँगा पीर की दरगाह पर पहुँचे । यह पीर कौन था और कब हुआ था, इन बातों को जानने के हमारे प्रयत्न विफल हुए; धर्मान्धता के जनक प्रज्ञान के कारण चल पड़ी इस किम्वदन्ती के अतिरिक्त कोई जानकारी न मिल सकी कि दिल्ली के बादशाह का भतीजा गोरो बेलम पालीताना में रहता था और उसी ने अपने समय में भीतर और बाहर दोनों मसजिदें और ईदगाहें बनवाई थीं । नीचे दी हुई कहानी के आधार पर हम यह नतीजा निकाल सकते हैं कि 'पीर' किसी 'दीन के दीवाने' विजेता के वंश का था। कहते हैं कि उक्त 'हेंगा' ने अपनी तलवार आदिनाथ के सिर पर चलाई, जिसको वें रोक तो न सके परन्तु आक्रामक को चोट देकर मार डाला ।' जब वह जिन (भूत) हो गया तो पुजारियों के पूजा-पाठ में इतने विघ्न करने लगा कि एक बड़ी सभा करके हेंगा के प्रेत को बुलाया गया और पूछा गया कि उस की आत्मा को शान्ति किस प्रकार मिल सकती है ? जवाब मिला कि 'मेरी हड्डियाँ इस पवित्र पर्वत की चोटी पर रखी जावें और जीवित अवस्था में भूतों को वश में करने वाला हेंगा पीर अब भी वहाँ लेटा हुआ है । हिन्दुओं को ऐसो किम्वदन्तियाँ मिल जाने पर बड़े आनन्द का अनुभव होता है जिनके द्वारा उनके धर्म के प्रति किए गए अपमान में, जिसका अधिक शक्तिपूर्ण प्रतिरोध वे न कर सके हों, कुछ हलकापन आ जाए; अस्तु, इस समय जो दरवेश अपने पीर की दरगाह की देखभाल करते हैं उन्होंने स्थानीय नियमों के पालन को आवश्यक मान रखा है; वे न तो पहाड़ी पर भोजन छूते हैं और न नीचे आ कर ही मांसाहार करते हैं । ज्यों ही हम नीचे उतरे त्यों ही बहुत दिनों से इकट्ठे हो रहे बादल भी कुछ फुहारें छोड़ कर बिखर गए और हवा ठण्डी हो गई । बॅरोमीटर पहाड़ पर २८° पर था ओर थर्मामीटर पहाड़ से नीचे आने पर भी ७२० बता रहा था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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