SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 433
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०४ ॥ पश्चिमी भारत की यात्रा कारण ही उस बादशाह को 'जगद्गुरु' की स्पृहणीय पदवी प्राप्त हुई थी और इसी कारण वैष्णव लोग उसे कन्हैया का अवतार मानते थे। उसके अव्यवस्थित चित्त वाले पुत्र जहाँगीर ने भी समय-समय पर. इन बातों और अन्य सुविधाओं को सम्पुष्ट किया, यद्यपि इसलाम के सिद्धान्तों से विचलित हो कर वह हिन्दुओं के वेदान्ती मठों में घूमा करता था। एक बार तो उसने अपने राज्य के सभी प्रोसवाल साधुओं को सुनत कराने की प्राज्ञा जारी कर दी थी-इस दुर्भाग्य को एक प्राचार्य की चतुराई ने ही टाला था।' शिवासोमजी की ट्रक छोड़ कर मैंने एक छोटे-से मन्दिर में आदिनाथ की माता मरुदेवि के दर्शन किये, जिनको उनके पुत्र के दर्शनार्थ आने वाले सभी यात्रियों की श्रद्धा प्राप्त होती है । इसी प्रकार वहाँ एक छोटा-सा मन्दिर सन्तनाथ का भी है; चौबीस जैन तीर्थंकरों में से यही एक हैं जिनकी मूर्ति सिद्धाचल पर भी है और जो प्रथम तीर्थकर के नाम से पवित्र है । इस नाम में पर्वत के बहत से पर्यायों में से इस शब्द के प्रयोग (अचल, एक प्रालंकारिक शब्द है अर्थात् न चलने वाला) और प्रथम जैन तीर्थंकर के अन्य नामों में से इस नाम (सिद्ध) के योग में हमें शैवों के शाश्वत प्रयोग का एक साम्य दिखाई पड़ता है। शिव का एक नाम सिद्धनाथ भी है अर्थात् वे सब सिद्धों के स्वामी हैं । आदिनाथ और आदीश्वर एक ही हैं और आदिनाथ का प्रसिद्ध नाम 'वषभदेव' 'नन्दिकेश्वर' का पर्याय है जिसका अर्थ है, 'वृषभ का स्वामी' । इसके अनुसार आदिनाथ अथवा वृषभदेव की मूर्ति सदा उनके नीचे उत्कीर्ण चिह्न वृषभ या बैल से पहचानी जाती है; और ईश्वर अथवा शिव को भी नन्दिक से उसी प्रकार अलग नहीं किया जा सकता जैसे 'मूविस' से 'प्रोसिरिस' को। सम्भवतः इनका नाक्षत्रिक महात्म्य भी समान ही है, और सब से अधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि ये भारतीय 'सीरिया', पालीताना में और मध्यसागरीय सीरिया पलेस्टाइन (फिलस्तीन) में, सिन्धु और गंगा के तट पर तथा उसी प्रकार नील नदी के किनारे पर समान रूप से पाये जाते हैं और बाल अथवा सौरों या सूर्यदेवता (जिसके नाम और पूजा के कारण दोनों देशों का नाम सीरिया पड़ा) के उपासकों द्वारा पूर्ण भक्ति के साथ वृषभ अथवा लिंग के रूप में पूजे जाते हैं, जिनके विषय में कभी बौद्धों और जैनों का ऐकमत्य था। इस पर्वत की तीनों टूकों का सामान्य वर्णन करने के बाद अब हमें आदिनाथ के मन्दिर से नीचे उतरना चाहिए । प्रत्येक मन्दिर के पथक वर्णन, १ ये प्राचार्य युग प्रधान जिनचन्द्र सूरि थे। २ देखिए टिप्पणी पृ० ५५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy