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पश्चिमी भारत की यात्रा १३१७ ई० का था अथवा यों कहिए कि 'अल्ला' या नरक के स्वामी 'यम के अवतार' की मृत्यु के बीस वर्ष बाद का वह लेख था। सब ओर प्राचीन काल की टी-फूटी इमारतों के ढेर पड़े हुए हैं और इन्हीं में से अतीत की स्मति बनाए रखने को आधुनिक मन्दिर खड़े किए गए हैं। ___अब इस मन्दिर को छोड़ कर हम पर्वत के दूसरे भाग पर चलें जो बड़ौदा के धनी अन्न-व्यापारी के नाम पर 'प्रेम मोदी का टूक' कहलाता है। दौलत की सर्वशक्तिमत्ता का इस से अच्छा प्रमाण और क्या हो सकता है कि केवल आधी शताब्दी पहले हुए एक साधारण मोदी के नाम ने उस प्रतापी सम्प्रतिराज के नाम को लुप्त कर दिया, जो विक्रम की दूसरी शताब्दी में हुअा था, जिसकी पवित्रता, महानता और सुरुचि के ऐश्वर्यपूर्ण स्मारक अजमेर और कुम्भलमेर के मन्दिरों के रूप में वर्तमान हैं तथा जिस को सभी जैन लोग राजग्रह (Rajgrah) के राजा श्रेणिक (Srinica) के समय से अब तक–अणहिलवाड़ा के स्वामियों को मिला कर भी, अपना महानतम और सर्वश्रेष्ठ राजा मानते रहे हैं। मैं इस तथ्य की सूचना के लिए उन आचार्यों के प्रति, जिनकी कृतियों के विषय में पहले लिख चुका हूं, और स्थानीय परम्पराओं के लिए आभारी हूं, जो मोदी के नाम के साथ सम्प्रति के नाम को जोड़ रही हैं। कुछ भी हो, वह (मोदी) भी प्रशंसा का पात्र अवश्य है क्योंकि उसने केवल गिरे हुए मन्दिरों का जीर्णोद्धार
और सजावट करा कर पुजारियों के निर्वाह के लिए धन-राशि ही प्रदान नहीं को अपितु उनको रक्षार्थ चारों ओर व्यूह रचनाकार सुदृढ़ परकोटा भी बनवा दिया है। देवताओं की सुरक्षा का इससे अच्छा प्रबन्ध और कहीं नहीं है। यहां पर आदिनाथ और उनके अनुयायी, यदि उन्हें अपनी जनशक्ति में विश्वास हो तो, सब प्रकार से निर्भय होकर रह सकते हैं।
ये शिखर एक घाटो द्वारा विभाजित हैं जिसमें चट्टान को काट कर एक विशाल सोपान-सरणि ऐसी रीति से बनाई गई है कि लघु-श्वास लक्ष्मी पुत्रों के लिए यह चढ़ाई सुगम से सुगम हो जाय । प्राधे रास्ते पर आदि बुद्धनाथजी की रूप और आकृतिहीन मूर्ति खड़ी है; इसके पास ही खोरिया माता का तालाब है जिसमें सब रोगों को दूर करने का प्रभाव है। किम्वदन्ती है कि इस महामाया ने तप और पूजा के इस पवित्र स्थान को हथियाने
और भ्रष्ट करने वाले दानवों, दैत्यों और सौरों की 'खोर' अथवा हडिडयों को अलग-अलग कर दिया था। उक्त नाम बुद्ध और जिनेश्वर के अवतारों की एकता का एक और प्रमाण उपस्थित करता है और मेरे प्रमाणों के ग्राधार पर 'अर्-बुध' और 'पादिनाथ' अर्थात् प्रादि बोध और प्रादि-देव में कोई भेद नहीं है
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