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________________ प्रकरण – १४; मन्दिर की पुरावस्तुएं गिरिनार की झांकी मिल गई थी; परन्तु, उत्तर और पूर्व में हल्का अन्धकार हमें समुद्र तट और बीस मील तक के भू-भाग से आगे देखने में बाधक हो रहा था। हमने पर्वत की तलहटी में नागवती नदी को सूर्य किरणों में चमकते हुए और छोटी-छोटी लहरियों द्वारा क्षार समुद्र की ओर प्रधावित होते हुए देखा, और अन्त में, गहन वृक्षावली में से ऊपर निकलती हई छतरियों और पूर्वीय झील सहित पालीताना भी प्रकाश की आँख-मिचौनी में कभी कभी अपनी झलक दिखा देता था। पास ही में आदिनाथ के द्वितीय पुत्र बाहुबलि का भी एक छोटा-सा मन्दिर है जिसको पिता के प्रति भक्तों को आस्था का बहुल-सा भाग प्राप्त हो जाता है, परन्तु भारत में अन्यत्र भी कहीं इस 'मक्काधिपति' का पूजन होता है, ऐसा मैंने नहीं सुना । इससे सम्बद्ध दो अन्य पवित्र पर्वतों के नाम भी हैं-सौर भूमि से बाहर सिन्धु के पार सहसकूट और मगध की राजधानी में समेत शिखर जो अब बंगाल में है। बाहुबल के मन्दिर के पास ही सासन नाम की जैन देवी की छोटी-सी मूर्ति है और ढाल पर ही इस धर्म की दूसरी स्त्री-प्रतिमा वेहोती (Vehoti) माता की है, जिसका यह मन्दिर प्रणहिलवाड़ा के एक राजसी वणिक् ने बनवाया है, परन्तु इसको तुलना उसके द्वारा प्राबू पर बनवाये हुए देवालय से नहीं हो सकती। चौक में दीवार के सहारे-सहारे अनगिनती कोठरियां बनी हुई हैं जिनमें से प्रत्येक में कोई-न-कोई प्रतिमा विराजमान है। ये कोठरियां आदिनाथ की चरण सेवा में विभिन्न प्रांतों से आये हुये यात्रियों के लिए एकान्त साधना के काम में आती हैं। मैंने अपनी तिपाई रायां वृक्ष के नीचे रख दी और देखा कि पारा २८.०४' के निशान पर था और तापमापक दोपहर में भी ७२° बता रहा था, पहला यंत्र वही ऊंचाई बता रहा था जो आबू के गणेश मन्दिर की थी और उदयपुर की ऊंची घाटो की भी वही ऊंचाई थी। मन्दिर में भद्दापन और हीनता लाने वाले बेमेल जहाजी घण्टों, अंग्रेजी दीपकों, देवदूतों और न्यायाधीशों के चित्रों के होते हुये भी यदि कोई दर्शक 'बाबा आदम के टूक' (शिखर) पर से सन्तोष की भावना लिये बिना विदा होता है तो उसे केवल पुरातनता के रंग में डूबा हुआ आवश्यकता से अधिक एकाङ्गीण आलोचक ही माना जायगा; हां, यह बात अवश्य है कि इतिहासज्ञ और कलाकार को सन्तुष्ट करने के लिए वहां बहुत कम सामग्री है। मैंने प्राचीन पाली अथवा अन्य समझ में आने योग्य लेखों को ढूंढने का प्रयत्न किया परन्तु असफल रहा। मुझे जो प्राचीनतम लेख मिला वह संवत् १३७३ अर्थात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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