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________________ ३०० ] पश्चिमी भारत की यात्रा अरुचिपूर्ण सुनहरी कड़े और बलेवड़े (कण्ठाभूषण)। सम्पूर्ण वातावरण की गम्भीरता को इस निम्नस्तरीय रुचि के कारण और भी आघात पहुंचा है, जो सम्भवतः फिरंगियों के पड़ोस और देवपट्टण में पुर्तगाली गिरजाघरों को देखने के कारण बढ़ गई है अथवा प्रेरित :ई है। आदिनाथ के मन्दिर को भारी डचबनावट की प्राकृतियों के सुनहरी चित्रों से सजाया गया है और मोटे चेहरे वाले तथा सुनहरी पंखों वाले देवदूतों के चित्र बनाए गए हैं जैसे इंगलैण्ड के किसी देहाती गिरजाघर में चिह्न-स्वरूप बनाए जाते हैं। और लीजिए, अंग्रेजी दीपकों का झाड़ वेदी को प्रकाशित करता है और पुजारियों को प्रातःकालीन स्तुतिगान के लिए जगाने को लोहे के मुद्गर से जो घण्टा बजाया जाता है वह किसी पुर्तगाली युद्धपोत का घण्टा है, जिस पर उसके बनाने वाले डा कॉस्टा (Da Casta) का नाम मौजूद है। इन बातों से आप इस पवित्र मन्दिर की असंगतियों का कुछ अनुमान लगा सकते हैं । ___ड्योढी पर संगमर्मर की बनी हुई एक बैल की मूर्ति के अतिरिक्त उसी पत्थर की परन्तु छोटी माप की हाथी की मूर्ति भी है जिस पर आदिनाथ की माता मरुदेवी अपने पोत्रों भरत और बाहुबलि को गोद में लिए विराजमान हैं । द्वार पर दो शिलालेख हैं जो महत्वपूर्ण नहीं है । एक में लिखा है 'चित्रकूट (चित्तौड़), मेवाड़ के महाजन जोशी प्रोसवाल बीसा कुमार शाह ने बहादुरशाह मुजरात के बादशाह के समय में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया; शनिवार संवत् १५७८' दूसरे लेख में आदिनाथ, उनके मन्दिर की महिमा और जीर्णोद्धार कराने वालों के पुण्य का वर्णन है । चौक में अन्दर जाकर बाएं हाथ की ओर इस धर्म के अनुयायियों के लिए एक विशिष्ट पवित्र स्थान है जहां आदिनाथ 'एक ईश्वर' की उपासना में बैठा करते थे; उस समय इस पर्वत-शिखर पर केवल आकाश का चन्दोवा था और उनका मुख्य आराधना स्थल यही था। एक रायां का पेड़ उस स्थान पर उगा हुआ है और धार्मिक लोगों का दढ़ विश्वास है कि यह उसी अमर वृक्ष की संतान है जिसकी छाया में आदि जिनेश्वर बैठा करते थे और जो आज भी उनकी पवित्र पादुका पर छाया हुआ है। 'प्रकृति के द्वाग प्रकृतीश्वर' तक पहुंचने के लिए चित्त को एकाग्रता प्रदान करने वाला इससे अधिक उपयुक्त स्थान वे चुन भी नहीं सकते थे। दृश्य मनोरमा था; यद्यपि स्थल भाग की ओर बादल दृष्टिप्रसार को रोक रहे थे परन्तु सूर्य की एक किरण प्रायद्वीप के दक्षिण-पूर्वीय भाग में प्राचीन गोपनाथ और मधुमावतो (वर्तमान महुवा) को आलोकित करती हुई समुद्र तक फूट पड़ी थी। पश्चिम में हम को नेमिनाथ के पवित्र पर्वत और गौरवपूर्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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