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पश्चिमी भारत की यात्रा
__ पालीताना से इस पर्वत की तलहटी तक की सड़क का मार्ग विशाल वटवक्षों से प्राच्छादित है, जिनसे पूजा के निमित्त पाई हईं यात्रियों की मण्डलियों को पवित्र छाया प्राप्त होती है। यह मार्ग खूब चौड़ा है और जगह-जगह पर कुण्ड और बावड़ियाँ तथा पवित्र पानी के तालाब बने हुए हैं, जिनका पवित्र आत्माओं ने निर्माण कराया है। सजीव चट्टानों में कटी हुई एक सोपानश्रेणि तलहटी से चोटी तक चली गई है, जिसके दोनों ओर वेदियों पर चौबीस में से किसी न किसी सुप्रसिद्ध तीर्थङ्कर के चरण-चिह्न बने हुए हैं, जैसे आदिनाथ, अजितनाथ (जिनको तरिङ्गी पर्वत अर्पित है) सन्तनाथ और गोतम (अथवा गौतमार्य, जैसा कि उन्हें सर्वसाधारण में कहा जाता है), जो चौबीसवें तीर्थङ्कर महावीर के अनुवर्ती थे; यद्यपि उनका (गोतम का) नाम भारत से बाहर भी बहुत दूर दूर तक फैला हुआ है, फिर भी उन्हें वह सम्मान और अमरत्व प्राप्त न हो सका जिसका उपभोग उनके पूर्ववर्ती तीर्थङ्करने किया था। थोड़ी दूर चल कर पहाड़ो पर एक बीसाम (विश्राम) अथवा ठहरने का स्थान है, जो इण्डो-सीथिया के राजा आदिनाथ के ज्येष्ठ पुत्र भरत की पादुकाओं से पवित्र है । कुछ और आगे चल कर एक स्वच्छ पानी का टाँका है जो 'अच्छा' कहलाता है और नेमिनाथ की चरणपादुकाओं से पवित्र है । यहाँ से लगभग चार सौ गज की दूरी पर दूसरा विश्रामस्थान है, जहाँ एक सरोवर भी है, जिसको अणहिलवाड़ा के राजा कुमारपाल ने खुदवाया था। इसके पास ही हिन्दुओं को शक्ति देवी हिङ्गलाज माता का मन्दिर है। यहां से चल कर पहाड़ी की चढ़ाई के लगभग आधे मार्ग पर एक तीसरा बीसाम्ब (विश्राम) है, जो प्रायः इस चढाई में आने वाले सभी विश्राम-स्थानों से बड़ा है और यहां के सरोवर के नाम से 'शील-कुण्ड' ही कहलाता है। यहीं एक छोटा-सा गीचा है और सीढ़ियों की श्रेणी बनी हुई है जो छोटे-से जल-प्रपात को विस्तार प्रदान करती है। यह स्थान विशेष रूप से पवित्र माना जाता है क्योंकि यहां पर 'परमेश्वर' की पादुकाएं हैं, जो सब के स्रष्टा कहे जाते हैं। इसी प्रकार और भी बहत से विश्रामस्थल हैं जहाँ पर सरोवर और प्राचीन ऋषियों के चरण-चिह्न बने हए हैं। सभी तालाबों में पानी स्वच्छ था। बहुत-सी चक्करदार चढ़ाई के बाद हम सब से ऊँची चोटी के तल में पहुँचे, जो चारों ओर से सुरक्षित परकोटे द्वारा घिरी हुई है और जिसकी पूर्वीय मीनार पर 'हजा पीर' नामक मुसलमान सन्त की सफेद ध्वजा फहराती रहती है । जैन तीर्थङ्करों में इस मुसलिम सन्त के बलात् प्रवेश के विषय में आगे विवरण दिया जायगा । इसे अपनी दाहिनी ओर छोड़ कर हम पर्वत के दक्षिणी मुख की ओर आदीश्वर की टूक
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