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________________ २६४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा आदि पुरुष था, जो भारतवर्ष अथवा भरतखण्ड में (जिसमें एशिया का वह भाग सम्मिलित था जो कास्पियन और गङ्गा के बीच में है) फैले हुए हैं। इससे हमें नृवंशीय विभिन्नताओं का भी कुछे अनुमान हो जाता है। 'आदिनाथ' एक अनिश्चित शब्द है जिसका अर्थ आदि (वृद्ध) पुरुष भी हो सकता है; आदि का अर्थ है प्रथम अथवा मूलपुरुष; और इस प्रकार उनका दो बड़ी शाखाओं में से एक को अरब के समुद्री तट हो कर भारत में और दूसरी को उत्तर की ओर भेजना इस ज्योति-केन्द्र से मानव जाति के आदिम प्रसार होने का द्योतक है । इसी से इस प्रायद्वीप के सौर अथवा सीरिया होने तथा यहां के धर्म का पश्चिमीय सीरिया से भेद ज्ञात होता है । और, इसी प्रकार भारतवर्ष के शकों और जीतों (Getes) में मनु द्वारा उल्लिखित सुपरिचित यवन' अथवा 'जवन' नाम भी सम्भवतः 'जवन' की ही सन्तान का द्योतक है । हमें यह बात आगे चल कर भी ध्यान में रखनी चाहिए और मुख्यत: 'कालनेमि' का ईथोपीय (Ethopic) मुखमण्डल, धुंघराले बाल एवं प्रशस्त अधरों को देखते समय तथा हिन्दुओं के भ-छोर, जगत-कंट पर कृष्ण के मन्दिर को देखते समय, जहाँ उससे भी पुराना बुद्ध त्रिविक्रम का मन्दिर आज तक विद्यमान है। मैं फिर इस बात पर जोर दूंगा कि गिरनार के प्रस्तरलेख का अध्ययन करने की दिशा में कुछ प्रयत्न होने ही चाहिएं। ___ यह तो निश्चयपूर्वक स्वीकार कर लिया गया है कि मक्का में एक हिन्दू मन्दिर था, जहां हिन्दू धर्म से सम्बद्ध मूर्ति पूजा प्रचलित थी और जो लोग उस मन्दिर में प्रवेश पा सके हैं, जिनमें बहार्ड (Burkhardt) भी एक है, यह सिद्ध करते हैं कि वह काला पत्थर, जिसका इसलामी लोग अब भी पूजन करते हैं, हिन्दुओं का शालग्राम है और 'कृष्णवर्ण देवता कृष्ण का स्वरूप होने के कारण पूजनीय है। हमें इस बात में भी कोई सन्देह नहीं है कि बहुत प्राचीन काल से हिन्दू यात्री प्राय: मक्का जाया करते थे और अब तक भी अष्टखान (Astrakhan)' की बस्ती में रहने वाले लोग वॉलगा के किनारे पर उसी प्रकार विष्णु की पूजा करते हैं जैसे वे अपनी मातृभूमि मुलतान में किया करते थे। ये लोग उसी वंश के हैं जिसका जावड़ शाह काश्मीरी धनिक बनिया था और जिसके द्वारा शत्रुञ्जय पर बाहुबलि की मूर्ति लाने का समय विक्रम से १०० वर्ष बाद अर्थात् ४६ ई० माना गया है। , वॉल्गा नदी पर तातार जाति की बस्ती । ये लोग तुर्को की उस शाखा में हैं जो हरण आक्रमण के अनन्तर वाल्गा नदी के निम्न भागों में बस गए थे। बाद में १५५७ ई. में रूस ने इन पर विजय प्राप्त कर ली थी-E. R. E; Hastings, Vol. XII; p. 623 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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