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प्रकरण १४
पालोताना, जैनों का तीर्थस्थान; शत्रुञ्जय पर्वत; जैन-यात्री; जनमत की उदारता और . बौद्धिकता; माहात्म्य; जैनों के पांच तीथं; शत्रुञ्जय के शिखर पर्वत पर निर्मित भवनों के अधिष्ठाता महापुरुष; मक्का के मन्दिर की हिन्दू शैली; शत्रुजय पर भवन-निर्माण की तिथियाँ ; पालीताना से पर्वत तक का मार्ग; चढ़ाई; उपाश्रय और मन्दिर; कुमारपाल का मन्दिर; प्रादिनाथ का उपाश्रय; गच्छों के मतभेव का दुष्परिणाम; मन्दिरों में पुरावस्तुएं ; प्रादिनाथ के मन्दिर में गहनों की कुप्रथा; मन्दिर पर से विहङ्गमदृश्य ; प्रावि बुद्धनाथजी की मूर्ति रतनघोर का मन्दिर; श्रादिनाथ की प्रतिमा; जैन तीर्थङ्करों और शिव की मूर्तियों में समानता और उनके लिङ्ग; हेंगा पीर की मजार; उतराई ; देवकी के पुत्र के मन्दिर; भाट; पवित्र पर्वत को सम्पत्ति; यात्रियों के संघ पालीताना नाम की व्युत्पत्ति पुरावस्तुओं का प्रभाव; संदेवाह भोर साधलिङ्गा की प्रेमगाथा; पालीताना का प्राधुनिक इतिहास और वर्तमान वशा ।
पालीताना - नवम्बर १७वीं - मेरी तबीयत इतनी खराब थी कि सीहोर और जैनों के इस सुप्रसिद्ध तीर्थस्थान के बीच में ठोक से कुछ भी देख-भाल न सका; यद्यपि इधर कोई देखने योग्य बात भी नहीं बताई गई थी, फिर भी, यह असम्भव है कि इस भूभाग में पन्द्रह बीस मील की दूरी में भी किसी जिज्ञासु यात्री के श्रम को सफल करने के लिए यहाँ के निवासियों की किन्हीं विशेषताओं अथवा स्थानीय लक्षणों के दर्शन ही न हों । फिर, मैं तो ऐसी भी प्रत्येक वस्तु के निरीक्षण की अपेक्षा रखता था जो मेरे मस्तिष्क पर विशिष्ट प्रभाव डालने वाली न हो तो भी कोई बात नहीं हैं; परन्तु, इतना अवश्य है कि शायद ही कोई जैन अथवा बौद्ध यात्री मुझ 'असभ्य' 'फिरंगी' जैसी उमंग लिए हुए पवित्र शत्रुञ्जय पर्वत पर पहुँचा होगा ।
मैं यहाँ अनुभव की अपेक्षा कल्पना को ही आगे बढ़ने का अधिक अवसर दिया क्योंकि इन भूभागों में मुझे किसी महत्वपूर्ण अनुसन्धान का अधिकार नहीं दिखाई दे रहा था, जहाँ 'मोहम्मद' और 'अल्ला' ने इसलाम के पैगम्बर द्वारा प्राप्त मूसा के मूर्तिभञ्जन प्रदेशों के पालनार्थं अपनी सेनाओं का सञ्चालन किया था । यद्यपि 'दश आज्ञाओं में से द्वितीय आज्ञा के पोलन में बाधक हो कर जो
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१. परमात्मा की दश आज्ञाए, जो उन्होंने पंगम्बर मूसा को 'सनाई' Sanai पर्वत पर डी थीं। ये सर्वप्रथम दो प्रस्तर-खण्डों पर उत्कीर्ण हुई थीं ।
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