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पश्चिमी भारत की यात्रा उत्कोच के रूप में चढ़ावेंगे; अथवा, यदि किसी को घोड़ी वंध्या होती तो वह यह 'बोलारी' बोलता कि वह पहला फल (बछेरा या बछेरी) भगवान् के अथवा महन्त के, जो एक ही बात है, अर्पण करेगा; परन्तु, अपनी मनौती को पूरी करना या न करना प्रागरे की सब्जी बेचने वाली कुंजड़िन की तरह उस घुमक्कड़ की इच्छा और मन पर ही निर्भर रहता था। कहानी इस प्रकार है कि एक बार उस कुंजडिन का वह बैल या गधा खो गया, जिस पर वह अपनी सब्जी बेचने के लिए बाजार ले जाया करती थी। उस ने मनौती बोली कि वापस मिल जाने पर वह उस की कीमत का आधा भाग पास वाली मसजिद में चढ़ा देगी अथवा गरीबों को बाँट देगी। उस का जानवर मिल गया परन्तु कृतज्ञता प्रकट करने के बजाय उस ने रो-रो कर अपने पड़ोसियों को परेशान कर दिया। एक पड़ोसिन कुँजडिन ने उस के दुःख का कारण पूछा और जब उस ने कहा कि उसका जानवर बिकने की नौबत आ पहुंची है तो वह ठहाका मार कर हँसी और कहने लगी कि 'यदि तेरे दुःख का कारण यही है तो अपनी जबान बन्द और दिल काबू में रख, क्योंकि इसी तरह मैंने कई बार खुदा को चकमा दिया है।'
भीमनाथ की यात्रा के ये अानन्द हैं कि केवल उन का नाम लेना ही सब जगह के लिए एक प्रभावशाली पासपोर्ट (अनुमति-पत्र) का कार्य करता है तथा यात्री के लिए एक सिद्ध-मन्त्र के समान है, जिस के बल पर वह शत्रु-दल से आकीर्ण मार्ग में हो कर भी सकुशल यात्रा कर सकता है। मैं इस प्रसंग का इसी अनुमान के साथ उपसंहार करूंगा कि यहीं पर बलभी का वह प्रसिद्ध सूर्य-कुंड है जिस को उत्तरदेशीय आक्रमणकारियों ने भ्रष्ट कर दिया था।
इस प्रदेश में आप को कदम-कदम पर ऐसे दृश्य मिले बिना नहीं रह सकते, जो स्वयं मनोमोहक हैं अथवा प्राचीन ऐतिहासिक एवं पौराणिक गाथाओं से सम्बद्ध होकर आकर्षण की वस्तुएं बन गए हैं। .
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