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________________ प्रकरण - १३; भीमनाथ [२८७ के बहुत कुछ अनुनय-विनय करने पर भी अपनी इस प्रतिज्ञा को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ। तब स्वयं शिवजी एक वृद्ध ब्राह्मण के रूप में प्रकट हुए तथा उस के अनुताप को स्वीकार करते हुए उन्होंने इच्छानुसार वरदान मांगने के लिए कहा। भीम ने प्रार्थना की कि उस के इस पाप की याद सदैव बनी रहे इसलिए जिस देवता का उसने अपराध किया है उस के साथ भीम का नाम भी जुड़ जाये और तदनन्तर वह स्थान भविष्य के लिए तीर्थ रूप बन जाये--इस प्रकार इस स्थान का नाम 'भीमनाथ' पड़ा। झरने के किनारे पर एक शिवलिंग का पूजन होता है। कहते हैं कि कुछ समय पूर्व यहाँ के मुख्य पुजारी ने देवता के दृश्यमान लिंग पर मन्दिर खड़ा करवाने का विचार किया और कुतूहलवश जमीन में गड़े हुए लिंग की गहराई जानने के लिए उत्खनन भी किया। तीस फीट खोदने पर भी कोई पता नहीं चला, फिर भी उस ने अपना काम चाल रखा, तब स्वयं शिवजी प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि 'मुझे विशाल बड़ के पेड़ के अतिरिक्त और किसी मन्दिर की आवश्यकता नहीं है, जिस की लम्बी-लम्बी शाखाएँ स्तम्भों के समान हैं और जिस का छत्राकार घेरा ही सर्वथा उपयुक्त चंदोवा है, जो स्वयं मेरे व मेरे भक्तों के लिए पर्याप्त है ।' श्रद्धालु भक्तों के उत्साह से वहाँ पर बहुत बड़ा संभार चलता है, क्योंकि भगवान् शिव तो ( प्राकृतिक ) तत्वों से अपनी प्रतिमा की ) रक्षा करने में समर्थ हैं, परन्तु उन के स्थानीय एवं आगन्तुक भक्तों के कलेवर तो पाषाण की अपेक्षा प्रति कोमल सामग्री के बने हुए हैं। अतः उन्होंने महान् वटतरु की अपेक्षा सुदृढ़तर सुरक्षा-गृह बनाना ही अधिक उपयुक्त समझा। निदान, सभी स्थानों से यहाँ आने वाले यात्रियों के लिए पर्याप्त भवन बने हुए हैं। महन्त के पास अभी पिछले दिनों तक कच्छ और काठियावाड़ के एक-सौ चुने हुए घोड़ों का अस्तबल था--परन्तु, भाटों और चारणों को दान कर के उस ने अब उन की संख्या आधी रख ली है। कहते हैं कि इस दान का मुख्य लक्ष्य व्यय में कमी करना ही था। अन्य बहुत-से तीर्थ-स्थानों की तरह यहाँ भी महन्त की ओर से सदावर्त चलता है और प्रत्येक प्रागन्तुक यात्री को किसी भी प्रकार के जातीय भेदभाव के बिना भोजन दिया जाता है । घुमन्तू काठी जाति के लोग इस तीर्थ की बहत 'मानता' करते हैं। शान्ति से पहले के बिगड़े हुए जमाने में, जब इन लोगों के भाले हल के फल के रूप में परिणित नहीं हुए थे तब, वे लोग यहां पर अपने शस्त्र पैने किया करते थे और शिवजी की मनौती मनाया करते थे कि यदि उनका मनोनीत डाका सफल होगा तो लूट के माल में से दशमांश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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