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________________ २८६ ] पश्चिमी भारत की यात्रा बलभी से अधिक दूर न चल कर यात्रियों के लिए अद्यावधि एक तीर्थस्थान विद्यमान है, जो भीमनाथ के नाम से प्रसिद्ध है और यहां के राष्ट्रीय महाकाव्य महाभारत से सम्बद्ध है; यहां पर एक जलस्रोत है जिस का पानी प्राचीन काल में चमत्कारपूर्ण प्रभाव से युक्त था। इसी के किनारे पर पवित्र शिव-मन्दिर है, जहां पर देश के कोने-कोने से यात्री पाया करते हैं। इस स्थल की उत्पत्ति पाण्डव बन्धुओं के पराक्रम और उन के विराट-वन में बनवास से सम्बन्धित बताई जाती है। अनुश्रुतियों के आधार पर इसी प्रदेश को विराटक्षेत्र बताया जाता है और इस की राजधानी विराटगढ़ आधुनिक परन्तु अधिक भाकर्षक धोलका को बताया जाता है, जो बाल-क्षेत्र के अन्तर्गत है और जो मेवाड़ के प्राचीन ऐतिहासिक वत्तों की सचाई को सद्यः एवं दढ़ता के साथ प्रमाणित करता है-उन ऐतिहासिक वृत्तान्तों में लिखा है कि बलभी, विराटगढ़ और गढ़-गजनी-ये तीन प्रमुख नगर थे, जो उन लोगों के सौर देश' से निष्कासित होने पर उन्हीं के अधिकार में रहे थे। भीमनाथ का नाम पाण्डव भीम के नाम पर पड़ा है और इस शिवलिङ्ग की स्थापना के मूल में उस का अपने अनुज अर्जुन के प्रति स्नेह-भाव ही था, जो अपने धनुष के बल पर शिवार्चन किए बिना भोजन नहीं छूता था। जब हरिका (जिस में विराट था) के दुर्गम्य जङ्गलों में कितने ही दिन घूमने पर भो कहीं कोई शिवलिङ्ग न मिला और थका-मांदा अर्जुन मूछित हो कर आगे चलने में समर्थ न हुआ तो भीम को थोड़ी दूर पर एक चरवा (पानी भरने का बड़ा बर्तन) मिला। उस ने झरने में से पानी भर कर चरवे को प्राधा जमीन में गाड़ दिया और इस के चारों ओर शिवजी के चढ़ाने योग्य पत्रपुष्प, जैसे बेल, पाक और धतूरा आदि रख कर किसी गवेषक के समान उत्साहित हो कर वह अपने भाई अर्जुन के पास दौड़ा गया और उसे प्रसन्न हो कर पूजा करने के लिए कहा । इस प्रकार, धोखे से, अपने भाई की शक्ति पुनः प्राप्त होने पर वह खुशी के मारे अपने षड्यन्त्र का उद्घाटन करने के लोभ को भी न रोक सका और अट्टहास करते हुए कहने लगा कि उसने तो एक पुराने चरवे की पूजा कर ली। भाई की इस हँसी से अर्जुन बहुत अप्रसन्न हुआ और वे आपस में लड़ाई पर उतारू हो गए। उसी समय, भीम ने विश्वास दिलाने के लिए उस चरवे पर गदा से चोट मारी और उस के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। परन्तु, तभी एक बड़े आश्चर्य की बात हुई कि जहाँ उस की चोट पड़ी थी वहीं दरार होकर एक रक्त का नाला उझल पड़ा। अपने इस पापकर्म पर पश्चात्ताप करते हुए भीम ने आत्म-बलिदान करने का निश्चय किया और अर्जुन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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