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________________ २८४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा अधिकार है जिसकी, जैसा कि एशिया में ही नहीं, सभी जगह रिवाज है, अपने पिता से नहीं पटती, क्योंकि यहां पर भी अन्य उन्नत देशों की तरह उपासकों द्वारा उगते हुए और अस्तोन्मुख सूर्य को समान रूप से अर्ध्य नहीं दिया जाता। वलभी - 'सौरों की भूमि' की यात्रा करने का मेरे लिए एक मुख्य आकर्षण यह भी था कि मुझे मेवाड़ के राणाओं की प्राचीन राजधानी का पता लगाना था, जहां से इण्डो-गेटिक आक्रमणकारियों ने उन्हें विक्रम की पहली शताब्दी में निकाल दिया था। आजकल इसका नाम बाली अथवा वलेह है, परन्तु जब मैंने गोहिल राजा में इसके विषय में पूछा और उन्होंने इसका पूरा प्राचीन नाम 'बलभीपुर' बताया तो मुझे बहुत प्रसन्नता हुई; साथ हो, मुझे यह जान कर दुःख भी हुआ कि भूतकाल में जिस नगर का घेरा अट्ठारह कोस (बाईस मील) में था और जहां तीन सौ और साठ जैन-मन्दिरों के घण्टे उपासकों को प्रार्थना के लिए आमन्त्रित करते थे वहाँ उसकी महानता का अब कोई भी चिह्न अवशिष्ट नहीं रह गया था-केवल नींव की ईंटें खोदने पर ऊपर ही खूब मिल जाती हैं, जिनमें से प्रत्येक लम्बाई में दो फीट और तौल में आधा मन अथवा पैंतीस पौण्ड की होती है । प्रायः गडरियों को विचित्र भौति के सिक्के भी मिल जाते हैं। ये खण्डहर मेरे पालीताना के मार्ग से उत्तर की ओर पूरे दश मील की दूरी पर थे और गोहिल राजा ने, जिसके राज्य में ये स्थित थे, मुझे अच्छी तरह विश्वास दिला दिया था कि वहाँ कुछ भी दर्शनीय नहीं है, इसलिए मैंने वहां जाने का विचार छोड़ दिया । बलभी सिद्धराज के समय तक प्राचीन सूर्यवंशी राजाओं के एक वंशज के अधिकार में बना रहा। बाद में, ब्राह्मण जाति पर अत्याचार करने के कारण उसको निकाल दिया गया था। इन ब्राह्मणों को सिद्धपुर में विशाल रुद्रमाला मन्दिर के निर्माणोपरान्त यह नगर उसने एक सहस्र ग्रामों सहित 'सासन' अथवा धर्मार्थ प्रदान कर दिया था। इन लोगों के अधिकार में यह उस समय तक रहा जब तक कि आपसी झगड़ों के कारण वह जाति प्राधीन रह गई। उन लड़ाकुओं में से एक ने गोहिल राजा को यह प्रलोभन दिया था कि यदि वह उसकी सहायता करेगा तो वह अपने विरोधियों की भूमि उसको दिला देगा; उस समय-से, तीन शताब्दियां हो गई, यह गोहिलों के ही अधिकार में है । पवित्र पालीताना पहुँचने तक एक और भी अवसर मुझे मिला जब कि मैं अपने बलभी-विषयक ज्ञान में कुछ मनोरंजक वृद्धि कर सका; इस अवसर से मेरी उन सभी सूचनाओं की पुष्टि हो गई. जो मैंने बाली और मारवाड़ में सांडेरा के यतियों से सुन-सुन कर एकत्रित कर रखी थीं। ये उन लोगों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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