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________________ प्रकरण - १३, पीरम के गोहिल [ २८१ प्राचीन राजधानी खेरथल बालोत्रा से दश मील की दूरी पर है, अथवा थी। वहाँ से जिस सरदार को राठौड़ों ने निकाला था, उस का नाम सेजक था और वही सब से पहले सौर देश में भाग कर पाया था, जहाँ उस ने विजय प्राप्त कर के सेजकपुर नाम से नया नगर बसाया । उस का पुत्र राणजी हुआ जिस ने एक और नगर ले लिया और उसको अपने नाम पर राणपुर की संज्ञा प्रदान की। उस के पुत्र मोखड़ा (Mocarro) ने भीमाज, चमारनी, उमराला, खोखरा पौर प्राचीन बाली अथवा वलेह ले लिए, जो सब आजकल गोहिलवाड़ में सम्मिलित हैं । उसने गोगो और पीरम भी कोलियों से छीन लिए और पीरम को अपना निवासस्थान बनाया । वह प्रसिद्ध समुद्री डाकू हो गया था और अपने व्यवसाय को आमदनी के बल पर ही पीरम को हड़प गया; धन से लदे हुए छः जहाजों को लूटने के बाद वह इतना भयंकर हो गया था कि बादशाह को (आख्यान में बादशाह का नाम नहीं दिया है)' उस के विरुद्ध सेना भेजनी पड़ी। मोखड़ा ने, जो लम्बाई में छः हाथ का था, वीरतापूर्वक सामना किया और एक ही झपट्टे में बादशाह के भतीजे को भी मार डाला; पचीस हजार आदमियों के मारे जाने पर भी उस ने आमरण आत्म-समर्पण नहीं किया। इस घटना के कारण इस वंश को एक बार फिर देश छोड़ना पड़ा । मोखड़ा का बड़ा पुत्र डंगा किसी प्रकार गोगो में बना रहा, परन्तु उस का भाई सोमसी-जी नाँदोद चला गया और उस के वंशज आज तक राजपीपला में राज्य करते हैं। __इंगा के बीजली [जी] (Beejuli) और उस के कानजी और रामजी हुए। कानजी बादशाह के विरुद्ध गोगो की रक्षा करता हुआ युद्ध में मारा गया और उस का पुत्र सारङ्ग बन्दी हुआ । परन्तु, एक स्वामिभक्त नौकर किसी प्रकार बन्दीगृह में पहुँच गया और उस की जंजीरें तोड़ कर उसे चित्तौड़ ले गया। वहाँ के राजा ने उसे एक सेना देकर गोगो पर पुनः अधिकार प्राप्त करने के लिए भेजा, जहाँ पर उस समय उस के काका कानजी, [रामजी ?] ने कब्जा कर रखा था और अत्याचारी होने के कारण वहाँ की प्रजा उस से घृणा करती थी। उसे गद्दो से उतार कर पालीताना व लाटी के चौवालिस गाँवों का तपा' (Tuppa) उस की जागीर में दे दिया गया। सारङ्ग का पुत्र श्योदास था। एक बार फिर शाही सेना ने गोगो से गोहिलों का अधिकार हटा दिया और बे भाग कर खोखरा और उमराला चले गए। सम्भवतः उन का शत्रु वज़ीरउल्मुल्क ही था, जिस के शिलालेख के विषय में पहले लिखा जा चुका है। ' मुहम्मद तुगलक; History of Gujrat, Commissariat, Vol. I; p. 42 २ तप्पा-जिला या परगना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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