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________________ प्रकरण - १३; भावनगर के रावल [ २७७ की सवारी के आगे-आगे उसके पूर्वजों के ढोली के स्थान पर एक अरबी बाजे वालों की टुकड़ी उसका यशोगान कर रही थी और यह टुकड़ी एक विचित्र-से समूह के रूप में दिखाई दे रही थी, परन्तु भद्दी नहीं मालूम होती थी। दरबार में भी इसी प्रकार की असंगतियों भरी पड़ी थीं; जब तीसरे पहर हम महल में गए तो वहां सजीव एवं निर्जीव सभी वस्तुओं का एक ऐसा विचित्र समाज देखने को मिला जैसा मैंने पहले कभी नहीं देखा था। यहाँ पर अरबी और राजपूत रिवाजों का सम्मिश्रण था, जहाँ प्रत्येक वस्तु में जलीय एवं स्थलीय दृश्यों के संयोग का दर्शन होता था । दीवानखाना सुन्दर-सुन्दर झाड़-फानूसों से सजा हुमा था परन्तु उनके दुसंखे लकड़ी के लट्ठों पर खड़े किए गए थे, जो अवश्य ही किसी डॉक-यार्ड से लाए गए थे, जहां पर अच्छी से अच्छो नावें रस्सों द्वारा इनसे बाँधी जाती होंगी। छत में बहुत पास-पास काच के टुकड़े जड़े हुए थे और उनमें दीवारों पर बने हुए राजाओं के चित्र प्रतिबिम्बित हो रहे थे, जिनकी स्मति के साथ प्रत्येक वरतु अंग्रेजों से सम्बद्ध थी-इनमें मुख्य, जार्ज तृतीय' और उसकी रानी थीं। आदरणीय सम्राट के प्रतीक (उस चित्र) के प्रति सम्मान प्रकट करने हेतु जब मैंने अपना टोप उतारा तो इस ओर गोहिल सरदार का ध्यान गए बिना न रहा। जार्ज तृतीय और उसके पिता फ्रेडरिक, प्रिंस ऑफ वेल्स के चित्र राजपूताना में अपरिचित नहीं हैं। उदयपुर के राणाजी के यहाँ भी दोनों ही का एक-एक चित्र लगा हुआ था और जब उनके सामने अचानक आकर में इस प्रकार सिर उघाड़ कर नमस्कार करता, जिसका इस देश में प्रचलन नहीं है, तो वे बहुत प्रसन्न होते; वरन् मुझे अच्छी तरह याद है कि जब इसका (सिर उघाड़ने का) तात्पर्य मैंने उन्हें बताया तो उन्होंने अपने पास वालों को यह समझाने का अवसर न जाने दिया विशेष सफलता न मिली। इस के अनन्तर इन्होंने प्राधुनिक "हमदान' के स्थान पर अपनी राजधानी बनाई। यह स्थान घोड़ों की बढ़िया नस्ल के लिए बहुत उपयुक्त है। कालान्तर में इन के पास घोड़ों, ऊंटों और खच्चरों के विशाल पशु-धन हो गया और वे असीरियाई साम्राज्य को ताबे कर सके । ये लोग युद्ध करते-करते बहुत पक्के और दृढ़ हो गए थे । - History of the World, Weech; W. N. pp. 260-61 १ जॉर्ज तृतीय का पूरा नाम जॉर्ज विलियम फ्रेडरिक था। इस का राज्य-काल १७६० ई. से १८२० ई० तक था। अंग्रेज जाति में इसका अधिक सम्मान इसलिए होता था कि वह विशुद्ध अंग्रेज़ था और अपने पूर्ववर्ती राजाओं के समान जर्मन कुलोत्पन्न नहीं था जिनको इंगलण्ड निवासी विदेशी समझते थे। जॉर्ज तृतीय जन्म से ही अंग्रेजी भाषा बोलता था, जो उसकी प्रजा की भाषा थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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