SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 402
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण - १३; सौराष्ट्र के प्राकर्षण [ २७३ वर्गों के लोग मिलेंगे। मानवीय प्राकृतिक-इतिहास के शोधकर्ता के लिए उपयुक्त क्षेत्र होने के अतिरिक्त यह प्रदेश, एशिया के इस समुद्र-परिवेष्टित कोने की मोर मानव-मस्तिष्क को प्राकृष्ट करने वाले सभी धर्मों के इत्तिवृत्तों का भी केन्द्रीय अनुसंधान-स्थल है । प्रागे चल कर हम देखेंगे कि बौद्ध-धर्म के विषय में दो बातों में से एक अवश्य हो स्वीकार्य है-कि या तो इसका जन्म ही यहाँ पर हुमा अथवा एरिया (Aria) तक पहुँचने के लिए इस धर्म की जड़ पहले इसी प्रदेश में जमी थी। इस प्रश्न पर यह विवाद सामने आता है कि यहाँ पर कृष्ण की उपासना भी प्रायः उतने ही उत्साह और भवितभाव पूर्वक होती है। परन्तु, यदि हम परम्पराओं का समादर करें तो कहना पड़ेगा कि यह उपासना बुद्धपूजा का ही एक भेद है । पुरातत्त्वान्वेषकों और शिल्पशास्त्रियों को तो अपने अनुसन्धानों और चित्र-कक्ष के लिए नये-नये भाव सजाने का यहाँ पर बहुत बड़ा अवसर मिल जायगा क्योंकि उन्हें यहाँ लेखों की गूढ लिपियों को खोल कर पढ़ना और उन विविधाकार मन्दिरों की रचना करने वाले यांत्रिक मस्तिष्कों के आधार पर कल्पना करना होगा, जिनके द्वारा उनके संस्थापकों का धर्म चिर-स्थायी हो गया है। और, किसी पहाड़ी की चोटी अथवा समुद्र के तट पर निरभ्र चमचमाते दिन में अथवा वर्षा की सघन घनावली के घने अन्धकार में एक चित्रकार तो यहाँ की समरस विभिन्नताओं एवं सौन्दर्य की अनेकताओं को निरख कर पुलकित ही हो उठेगा। जलदावली की इस श्यामलता का वह सोमनाथ के मन्दिर और शिव के अस्पष्ट प्राचारों के साथ संयोजन कर सकता है अथवा राधा के प्रेमी के मन्दिर पर 'बोलते हुए.. रंग बरसा कर यौवनपूर्ण सौन्दर्य का चित्रण कर सकता है। अथवा, जैसे-जैसे वह पहाड़ पर 'शक्ति' के उपासक के मन्दिर की ओर चढ़ता जायगा वैसे ही गम्भीर से गम्भीर एवं सूक्ष्मतम प्राकृति और वर्ण को चित्रित करने के भाव उसके मस्तिष्क में उदित होते जावेंगे। यह उस प्रदेश के प्राकर्षणों का एक साधारण-सा चित्र है, जिसमें हो कर मैं पाठकों को ले चलना चाहता है-इस भूमि में इतने अधिक अध्येतव्य विषय हैं कि उनसे कितने ही ग्रन्थ और चित्र-संग्रह तैयार हो सकते हैं-परन्तु, मेरे अनुसन्धान एक त्वरित यात्रा के कारण सीमित हैं (यद्यपि विषय का कुछ पूर्व-ज्ञान मुझे है) प्रत: में सौर प्रायद्वीप के बहुत से अभिरुचिपूर्ण विषयों में से कुछ ही महत्त्वपूर्ण विषयों की परिमिति में रहने को विवश हैं। अब हम वापस गोगो चलें, जहाँ बारहवीं शताब्दी के अन्त में खेरधर से निकल कर जिस जाति के लोगों ने शरण ली थी। उनका नाम इसी स्थान के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy