________________
२७२ ]
पश्चिमी भारत की यात्रा
2
चौड़ाई लगभग एक सौ पचास मील है और बनास तथा सरस्वती नदियाँ जिसमें गिरती हैं उस, छोटे 'उत्तरी' रण से चावड़ों की प्राचीन राजधानी देवबन्दर तक का विस्तार भी प्रायः इतना ही है । इसके सभी ओर समुद्र घूम गया है, केवल उत्तर में दोनों खाडियों के सिरे विस्तृत अरण्यों (अप० रणों) के द्वारा मिल गए हैं और केवल साठ या सत्तर मील की केन्द्रीय पर्वत श्रेणी ( जिसको हिन्दू भूगोल - शास्त्री 'पार्वती' ( Parvati) कहते हैं) से बहुत से निर्भर निकल कर इस प्रदेश में आते हैं श्रीर दोनों समुद्री तलों की ओर बहते हैं, इस कारण यहाँ की धरती में कई प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। इन पहाड़ियों से सभी प्रकार का इमारती सामान प्राप्त होता है तथा यहाँ की नदियों में मछलियों की बहुतायत है और उनके तटों पर घने जङ्गल भी हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि जब से प्रणहिलवाड़ा के राजवंश समाप्त हुए तब से यहाँ की जातियाँ स्वतंत्र होकर जंगली और लुटारू जीवन बिताने लगीं और यह क्रम उस समय तक चलता रहा जब तक कि गायकवाड़ राजाओं ने इस प्रदेश के कुछ भागों पर सामन्ती और कुछ पर सम्पूर्ण सत्तात्मक रूप में पूर्ण अधिकार न जमा लिया । यहाँ के मुख्य उप-विभाग ये हैं- खम्भात की खाड़ी पर गोहिलवाड़ अथवा गोहिलों का प्रदेश, उत्तर में झालावाड़ जहाँ भाला (राजपूत) बसते हैं, पश्चिम में नवानगर, जहाँ जाड़ेचों की एक शाखा के जैन रहते हैं, पोरबन्दर में बालों का अधिकार है; जूनागढ़ में एक मुसलमान सरदार है और इसके अतिरिक्त कुछ और भी छोटे-छोटे जिले हैं । केन्द्र में काठी लोग हैं तथा चावडों की प्राचीन राजधानी देव बन्दर पर तीन शताब्दियों से पुर्तगालियों का अधिकार है, जिसका नाम उन्होंने बदल कर डयू (Diu ) कर लिया है । प्रायद्वीप के इन भागों में उक्त मूल जातियों के अतिरिक्त और भी बहुत सी सीथिक जातियाँ पाई जाती हैं, जैसे कामरी ( Camari ), जो अब जेठवा कहलाते हैं, कोमानी ( Comani ), जो काठियों की ही एक शाखा है; मकवाणा, जो प को झालों में गिनते हैं; जीतवार के जीत तथा अन्य भी बहुत सी शुद्ध अथवा मिश्रित जातियां हैं, जैसे मीरिया (Myrea), काबा इत्यादि, जिनका वर्णन जैसेजैसे उनके भेदों से हमारा सम्पर्क प्राता जायगा वैसे-वैसे यथास्थान आगे करेंगे ।
सच तो यह है कि जातियों की विभिन्नता के विषय में, वे देशी हों अथवा विदेशी, सौराष्ट्र के साथ भारत के अन्य किसी भी प्रान्त की तुलना नहीं की जा सकती । यहाँ पर आपको नीली आँखों वाले और गोरे काठियों से लेकर, जो अब भी उतने ही स्वच्छन्द हैं जैसे कि उनके पूर्वज मुलतान में मैसीडोनिया वालों से लोहा लेते समय थे, काले और तीक्ष्ण दृष्टि वाले 'वनपुत्र' भीलों तक सभी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org