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________________ मध्याय १३ वर्तमान सौराष्ट्र 1 [ २७१ शताब्दी पूर्व का हो सकता है जब कि सायरो-फोनिशियन ( Syro - Phoenician) उपनिवेश सभी क्षेत्रों में फैलते जा रहे थे । अणहिलवाड़ा को स्थापित करने वाला वंश उस सौर जाति का था, जो समुद्री तट पर बसी हुई थी धौर उन लोगों की प्रवृत्तियाँ मुख्यतः जहाजी थीं । इनमें से कुछ जातियों में ऐसी विचित्र परम्पराएं पाई जाती हैं जो यद्यपि उनके धर्म पर आधारित नहीं हैं परन्तु यह सिद्ध करती हैं कि वे अरब और लाल समुद्र से सम्बन्धित हैं ( इनका वर्णन यथा स्थान किया जायगा ) और ये विचित्र शिलालेख इस तथ्य की पुष्टि करते हुए प्रतीत होते हैं । ' इन क्षेत्रों के राजनैतिक नामाङ्कन में अन्य सौराष्ट्र का कोई स्थान नही है; हां, अकबर के समय तक इस प्रायद्वीप का एक उपविभाग संक्षिप्त रूप में 'सोरठ' कहलाता था, जिसकी राजधानी जूनागढ़ थी और यह गहलोत (मेवाड़ के राणाओं की जाति के ) राजानों के अधिकार में थी; साम्राज्य में इनके निश्चित सैनिक संविभाग का वर्णन अबुलफ़ज़ल ने किया है। यद्यपि उस समय को बीते तीन ही शताब्दियाँ हुई हैं परन्तु अब इस भूमि में एक भी गहलत नहीं मिलता । इन देशों में इस द्रुतगति से जातियाँ नष्ट हो जाती हैं । आजकल यह प्रायद्वीप बहुत-सी छोटी-छोटी रियासतों में बंटा हुआ है । यद्यपि काठियों के अधिकार में इसका बहुत थोड़ा-सा भाग है परन्तु, किसी परम्परा के अनुसार इस गेटिक भारतीय जाति के नाम पर ही इस सम्पूर्ण प्रायद्वीप का अभिधान किया गया है और इस प्रकार काठियावाड़ से सौराष्ट्र अभिभूत हो गया है । अस्तु - बीच में ( काठियों के उदय से पूर्व ) इस देश का एक नाम ऐसा था जिससे अल्माजेस्टम (Almagestum) का कर्ता एवं हिन्दू भूगोल-शास्त्री भलीभाँति परिचित थे; यह नाम 'लारदेश' था, जो लार जाति के नाम पर पड़ा था और ग्रीकों का 'लारिका' (Larica) अथवा लारिस (Larice) शब्द इसी से सम्बद्ध है । सौराष्ट्र अणहिलवाड़ा राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है । भारत में इतना सुगठित कोई दूसरा प्रदेश नहीं है, जिसकी गणना ऐसे सुसंहत राज्यों में की जा सके । जगत अन्तरीप से खम्भात की खाड़ी तक इसकी 9 उत्तर प्रथवा दक्षिण के निवासियों द्वारा उच्चारण करने पर प्रक्षर 'स' पोर 'च' में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है । इस प्रकार कुख्यात पिंजारी सरदार 'चीतू' को दक्षिणी उच्चारण में सदा ही 'शीतू' बोला अथवा लिखा जाता है । * टॉलमी (Ptolemy) कृत गरिणत-सारणी (२४० ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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