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पश्चिमी भारत की यात्रा आधार पर उनके पूर्वीय भाई-बन्धुओं से भिन्नता प्रकट करने के लिए गोगरा गोहिल पड़ा था। आजकल जो पीरम टापू बन गया है वहीं पर, गोगो से भी पहले, गोहिल लोग आकर बसे थे; उस समय यह टापू होने की विपरीत परिस्थिति में नहीं था क्योंकि एक छोटे-से भू-खण्ड द्वारा यह मूल प्रदेश से संयुक्त था और गोगो. बन्दर का सुदढ़ गढ़ बना हुआ था। इतिहास के इन घनिष्ठ सम्बन्धों में निरन्तर प्राप्त होने वाली सांयोगिक एवं मनोरञ्जक सम-सामयिक घटनाओं में से हमें एक ऐसी घटना का वृत्तान्त मिल गया है, जिससे पीरम की प्रधानता का सुपुष्ट प्रमाण प्राप्त होता है। मेवाड़ के इतिहास में सन् १३०३ ई० में, 'पल्ला' द्वारा उस देश के अधिकृत होने की चिरस्मरणीय दुर्घटना के सम्बन्ध में हिन्दू-धर्म की रक्षा के निमित्त एकत्रित हुए वीरों के नाम गिनाते समय 'पीरम के गोहिल' का भी उल्लेख किया गया है । उस ग्रन्थ का अनुवाद करते समय मुझे इस गोहिल के विषय में कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई थी और न अभी इस समय तक ही हुई है । गोहिलों के इतिहास और परम्पराओं में इस घटना की स्मृति सुरक्षित है, जिसने इस जाति के सम्मान में वृद्धि कर दी है। उस गोहिल सरदार का नाम अखैराज था; जब वह बनारस की यात्रा से लौट रहा था तब चित्तौड़ की रक्षा के निमित्त उसने तलवार बजाई और उस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में अपने वीर-समूह के साथ वीर-गति प्राप्त की थी। इन सेवाओं के उपलक्ष में उसे 'रावल' की उपाधि पहले ही प्राप्त हो चुकी थी, जो अब तक उसके उत्तराधिकारियों में चली आ रही है। उसके वंशज वर्तमान सरदार ने मुझे यह भी बताया कि उसके पूर्वज को चित्तौड़ (के राणा) की लड़की सूजन कुमारी के साथ विवाह करने का भी विशेष सम्मान प्राप्त हुआ था-परन्तु, उस नवविवाहिता कन्या को 'अल्ला' की विजय का शिकार होकर सती हो जाना पड़ा। यह उपाख्यान इस कृति के अन्यतम भाग से सम्बद्ध है, यद्यपि इसका विषय पीरम का प्राचीन नगर है, जो गोगो से आने वालो जाति का (दिया हुमा) नाम है; इस (जाति) के पतन-विषयक वृत्तान्त वास्को-डे-गामा के अनुसन्धानों का एवं उसकी जाति के लोगों की इन समुद्री तटों पर प्रतिष्ठा का महत्त्व बढ़ाते हैं।
'सन् १५३२ ई० में जब भारत में पुर्तगाली हितों का गवर्नर, नन्हा दे कान्ह (Nunna de Canha) ड्यू (Diu) पर अधिकार करने के प्रथम प्रयास में असफल हो गया तो उसने अपने एक कप्तान एण्टोनियो-दे-साल्दन्हा (Antonio de Saldanha) को केवल समुद्री लूटमार के लिए ही यहाँ छोड़ दिया था। उन लोगों ने डयू से बारह लोग दूर सौराष्ट्र के दोनों तटों पर निर्दयता से
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