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प्रस्तावना
[१७ तथा लंदन की रायल एशियाटिक सोसाइटी में जमा करा दी, जो अब भी वहां सुव्यवस्थित रूप में सुरक्षित है। ____ टॉड कृत 'पश्चिमी भारत को यात्रा' ग्रंथ कोरा यात्रा-विवरण न रह कर उसके द्वारा संगृहीत ऐतिहासिक सामग्री से प्राप्त तथा उसको ज्ञात ऐतिहासिक जानकारी का एक विस्तृत संग्रह बन गया है। अपने ग्रंथ-लेखन के लिये इस शैली विशेष को अपनाने का कारण स्पष्ट करते हुये टॉड ने स्वयं लिखा है-'जब मैं यह कहता हूँ कि चरित्रों, ऐतिहासिक वृत्तान्तों, सिक्कों और शिलालेखों आदि से इतनी सामग्री प्राप्त होती है कि अणहिलवाड़ा और उसके अधीनस्थ राज्यों का एक क्रमबद्ध इतिहास लिखा जा सकता है, तो प्रश्न होता है कि मैंने ही ऐसा प्रयास क्यों नहीं किया ? उत्तर सीधा है, कि अपनी शक्ति पर भरोसा न होने के कारण मैंने अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर ऐतिहासिक और कालक्रमसंबंधो तथ्यों की संगति कर देना ही अधिक उपयुक्त समझा और जैसा कि मैंने अपनी पूर्व कृति (टॉड-राजस्थान) में किया है, इतनी ही सामग्री इतिहास-लेखकों के लिये प्रस्तुत करने में मुझे संतोष भी है । तथापि यहां पर हम उन टूटी हुई कड़ियों को जोड़ने का प्रयास कर सकते हैं जो पश्चिमी भारत के बल्हरा राजामों के इतिहास को ईसाई सन् के समकालीन युगों से संबद्ध करती हैं।" ___टॉड ने जिस काल में यह सारी सामग्री एकत्र की तथा उसको समझने. बूझने का प्रयत्न कर अपने ग्रंथों की रचना की, वह भारतीय पुरातत्त्व तथा ऐतिहासिक शोध का सर्वथा प्रारंभिक काल था। अतः टॉड के इन ग्रंथों में अनेकानेक भूलों, एकांगीयता और अपूर्णता का होना सर्वथा अनिवार्य था। वस्तुतः टॉड कृत 'पश्चिमी भारत की यात्रा' से गुजरात प्रदेश के पुरातत्त्व तथा पूर्व-मध्यकालीन इतिहास के अध्ययन का प्रारभ ही हुआ था। इसी कारण इतिहास संबंधी उसके भावपूर्ण विवरणों, खोजपूर्ण निर्णयों और चतुराईपूर्ण अनुमानों का कोई विस्तृत विवेचन या टॉड की भूलों का व्योरेवार निर्देशन यहाँ समीचीन नहीं होगा। क्योंकि इन त्रुटियों या ऐसी कोई न्युनताओं के कारण इस ग्रंथ की उपादेयता किसी प्रकार घटती नहीं है। उसमें संग्रहीत ऐतिहासिक सामग्री तथा उन क्षेत्रों के ऐतिहासिक स्थानों, मन्दिरों या विशिष्ट प्राचीन खंडहरों के तत्कालीन विवरणों के साथ ही कई एक अन्य विशेषताओं के कारण ही टॉड के इस यात्रा-विवरण का महत्त्व प्राज भी बना हुआ है।
टॉड ने यह यात्रा तब की थी जब वहां अंग्रेजों का आधिपत्य स्थापित हए
१. पश्चिमी भारत की यात्रा, पृ० २२६-२२७ ।
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