SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पश्चिमी भारत की यात्रा भावनगर के इतिहास लेखकों से मिलकर उसे बहुत निराशा ही हुई क्योंकि तब तक मिले हुए इतिहास-लेखकों में उसने उन्हें 'सब से अधिक अनपढ़' ही पाया । सोमनाथ-पट्टन में हस्तलिखित ग्रंथों की खोज करते-करते अंत में उसने वहाँ के पुराने काजी-घराने के अनभिज्ञ वंशज के पास से एक हिन्दी काव्य की खण्डित प्रति प्राप्त की जिसमें पाटन के पतन की कहानी थी। द्वारका में एक झाला-वंशीय सरदार से उनकी वंशोत्पत्ति की विचित्र कथाएँ और बाघेलों की उत्पत्ति संबंधी बहुत सी बातें उसने सुनीं। द्वारका के ही एक वंश-भाट की वंशबही तथा राजवंशावली में से उसने कुछ पत्रों की नकलें कर लीं। भुज नगर पहुंचते हो वहाँ के भाटों और उनकी बहियों को उपलब्ध किया। वहां को रीजेन्सी के प्रमुख सदस्य रतनजी से जाड़ेचा शासन का पूरा-पूरा ज्ञान प्राप्त किया और राजपूत शासन-पद्धति से वह किन बातों में भिन्न था इसको भी ठीक तरह से समझा । राजस्थान में रहते हुए टॉड ने जैसलमेर से कागज और ताड़पत्र की कितनी ही प्रतियाँ प्राप्त कर ली थीं। पश्चिम भारत की इस यात्रा में उसने पाटन और खम्भात के जैन ग्रंथ-भण्डारों में से कुछ ग्रंथों की प्रतियाँ प्राप्त करने का प्रयत्न किया। टॉड ने स्वयं देखा कि इन जैन ग्रंथ-भण्डारों में "अनुसंधान का सबसे अच्छा उपाय यही है कि किसी ऐसे जैन साधु को 'मुंशी' बना लिया जावे, जिसकी पट्टावली में हेमाचार्य अथवा अमर उसके धर्म-गुरु पाए जाते हों; बस, फिर उसके माध्यम से सब ही ताले खुल जावेंगे"। अतः उसने अपने जैन गुरु ज्ञानचंद्र को पाटन के ग्रंथ-भण्डार में से 'वंशराज-चरित्र' और 'शालिवाहनचरित्र' की प्रतियां खोज निकालने को भेजा। परंतु वहाँ चालीस संदूकों में रखे ग्रंथों के निरीक्षण के बाद भी उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। तदनंतर जिस तहखाने में यह ग्रंथ-भंडार स्थित था वहाँ के तंग और घुटनपूर्ण वातावरण के कारण वे इस अन्वेषण से विरत हो गये । 'कुमारपाल चरित्र' (वस्तुत: 'कुमारपाल रास') की कुछ प्रतियाँ टॉड ने प्राप्त कर लीं, परन्तु बहुत चाहने और प्रयत्न करने पर भी वह 'वंशराज-चरित्र' की प्रति नहीं प्राप्त कर सका। वर्षा ऋतु में जब टॉड को कई माह तक बड़ौदा ठहरना पड़ा था, तब उसने वह सारा समय बहुत से हस्तलिखित ग्रंथों और शिलालेखों की प्रतियां करने या करवाने में ही बिताया। इस प्रकार वह प्रति दिन अपने संग्रह में कुछ-न-कुछ वृद्धि ही करता रहा, जिसके फलस्वरूप भारत से रवाना होने तक उसके पास खंडित प्रतिमाओं, शिलालेखों, शस्त्रास्त्रों, हस्तलिखित ग्रंथों, कागज-पत्रों और प्राचीन सिक्कों प्रादि की कोई चालीस सन्दूकें हो गई थीं। टॉड द्वारा तब संगृहीत इस सामग्री की लगभग सारी ही मूल्यवान् वस्तुएं उसने इंडिया हाउस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy