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प्रस्तावना
[ १५ भी स्पष्टतया देखा कि उस शिलालेख में बहुत से संयुक्ताक्षर भी हैं। टॉड की मृत्यु के कुछ वर्ष बाद जब जेम्स प्रिनरोप आदि विद्वानों के प्रयत्नों से ब्राह्मी अक्षर पढे जाने लगे, तब पिछले समय के सब ही लेखों को पढ़ना सुगम हो गया और ब्राह्मी लिपि के अक्षरों के बारे में अन्य युरोपीय विद्वानों के साथ ही टॉड के तद्विषयक अनुमान गलत प्रमाणित हो गये।
ऐतिहासिक शोध में प्राचीन सिक्कों के महत्त्व से टॉड पूर्णतया परिचित था, अतः उनका निरंतर संग्रह करता रहता था। पश्चिम भारत की इस यात्रा में भी वह बराबर उनकी टोह में लगा रहा । चन्द्रावती के खण्डहरों में उसे परमार-कालोन कुछ सिक्के मिले थे। परंतु उससे पहिले उसने मारवाड़ में बाली नामक जैन कसबे से 'बहुत से विचित्र सिक्के इकट्ठ कर लिये थे, जिनमें से कुछ तो इण्डो-सीथिक ठप्पे के थे और उन पर लेख गूढाक्षरों में था' । आगे माण्डवी (कच्छ) की श्मशान-भूमि के खण्डहरों में से भी उसे अच्छी दशा में सुरक्षित दो सिक्के प्राप्त हुए थे, जिनमें से एक पर 'उन्हीं दुष्पाठय अक्षरों में लेख था जो गिरनार के शिलालेख में मिले थे।' टॉड ने इस प्रकार बाक्ट्रिमन, ग्रीक, शक, पार्थिअन और कुशाण वंशी राजाओं के प्राचीन सिक्कों का एक बड़ा संग्रह कर लिया था, जिन की एक ओर प्राचीन ग्रीक और दूसरी पोर खरोष्ठी अक्षरों के लेख थे। परंतु तब खरोष्ठी लिपि के पढ़ने का कोई साधन नहीं था, अतः इन अक्षरों को लेकर भिन्न-भिन्न कल्पनाएँ होने लगीं। टॉड ने स्वयं सन् १८२४ ई० में कफिसेस के सिक्के पर के इन अक्षरों को 'ससेनियन' बताया था। कई वर्षों के बाद जब मेसन ने खरोष्ठी के कुछ अक्षर-चिन्हों को पहिचान लिया और आगे चल कर जब यह ज्ञात हुआ कि खरोष्ठी लेखों की भाषा पाली-प्राकृत है, तब ही जेम्स प्रिन्सेप तद्विषयक शोध को आगे बढ़ा सका। यह सत्य है कि टॉड स्वयं इस दिशा में कोई विशेष सफल कार्य नहीं कर सका, परंतु इतनी अधिक संख्या में ऐसे दुर्लभ मूल्यवान् सिक्कों को बड़े परिश्रम से संग्रह कर उन्हें संशोधकों को उपलब्ध करवा कर उसने भारतीय ऐतिहासिक शोध में बहुत बड़ा योगदान दिया।
पश्चिम भारत की अपनी इस यात्रा में टॉड हर प्रकार की महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री एकत्र करने में निरंतर लगा रहा । जिस किसी महत्त्वपूर्ण नगर, कसबे या राजधानी में गया, वहाँ के ग्रंथ-भण्डारों, इतिहासज्ञ चारण-भाटों तथा ऐतिहासिक घरानों में प्राप्य हस्तलिखित ग्रंथों और महत्त्वपूर्ण कागज-पत्रों के संग्रहों की टोह लगाता रहा । बाली के जैन कसबे से 'मेवाड़ के राजाओं से संबंधित महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक नामावली का 'खरी प्राप्त किया।
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