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________________ १४] पश्चिमी भारत की यात्रा को प्राप्य हैं, क्योंकि वे मूल शिलालेख या तो तब शासकीय अधिकारियों की असावधानी और उपेक्षा के कारण तब ही कहीं खो गये या इस पिछली डेढ़ शताब्दी में प्राकृतिक कारणों या वहाँ के अज्ञानी निवासियों की करतूतों के फलस्वरूप नष्ट हो गये हैं जिससे आज वे सर्वथा अप्राप्य हैं। अपने इस यात्रा विवरण में टॉड ने स्थान-स्थान पर उसे तब यों प्राप्त शिलालेखों तथा कहींकहीं उनसे प्राप्त महत्त्वपूर्ण जानकारी का भी यथास्थान उल्लेख किया है । कुछ महत्त्वपूर्ण शिलालेखों का अनुवाद भी उसने परिशिष्ट में दे दिया है । इन शिलालेखों में परिशिष्ट सं० ७ का शिलालेख विशेष महत्त्व का है जो मूलता सोमनाथ का होते हुए भी टॉड को वेरावल में मिला था । उसमें सिंह संवत् का उल्लेख है, जो तब तक अज्ञात ही था। उसको किसने चलाया इस बारे में अभी तक इतिहासकार एकमत नहीं हो पाये हैं। टॉड द्वारा खोज निकाले गये या एकत्र किये गये शिलालेखों की प्रतिलिपियाँ प्रायः उसके "अपने मित्र और गुरु 'ज्ञान के चन्द्रमा' यति ज्ञानचंद्र" ने की थीं और उनका अनुवाद करने में भी टॉड को इन्हीं से सहायता मिली थी। ईसा की सातवीं शताब्दी के बाद की भारतीय लिपियां, संस्कृत और प्राकृत के विद्वान्, जिन्हें प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों को पढ़ने का अभ्यास होता था, विशेष यत्न करने पर ही पढ़ सकते थे। अतः कई बार उन प्राचीन शिलालेखों की प्रतिलिपि करने में यत्र-तत्र भूल हो जाना अनहोनी बात नहीं थी। तब भारत में ऐतिहासिक शोध का प्रारम्भ ही था और भारत के प्राचीन तथा पूर्वमध्यकालीन इतिहास की जानकारी भारतीय विद्वानों को भी नहीं थी। अतः इस अत्यावश्यक ऐतिहासिक जानकारी के अभाव में इन शिलालेखों का अर्थ लगाने में टॉड का अनेकों भूलें करना सर्वथा स्वाभाविक ही था। अपने देश की प्राचीन ब्राह्मी लिपि तथा उससे निकली हुई ईसा की छठवीं शताब्दी तक की लिपियों को पढ़ना भारतीय विद्वान् बहुत पहिले ही भूल गये थे जिससे अशोक के अन्य धर्म-लेखों की तरह गिरनार की चट्टान का सुविख्यात शिलालेख भी कोई नहीं पढ़ पा रहा था। अशोक के इन लेखों की लिपि ऐसी है कि ऊपरी तौर से देखने वाले को अंग्रेजी गा ग्रीक लिपि का भ्रम हो जाता है । यही कारण था कि युरोपीय यात्री टॉम कोरियट ने दिल्ली में अशोक स्तम्भ के लेख को देख कर उसे 'पोरस पर सिकन्दर की विजय का लेख' घोषित किया था। टॉड ने भी गिरनार के इस लेख के अक्षरों, ग्रीक लिपि और प्राचीन चौकोर अक्षरों में समानता देखकर लिखा कि इस लेख के कितने ही अक्षर प्राचीन ग्रीक और केल्टो. एट्र स्कन अक्षरों से मिलते हैं। किन्तु साथ ही टॉड ने यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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