________________
१८]
पश्चिमी भारत की यात्रा
कुछ ही वर्ष हुए थे । वहाँ की राजनीति, समूचा समाज और संस्कृति तब भी मध्ययुगीन परंपराओं तथा गये-बीते युगों के वातावरण में डूबी हुई थीं । वहाँ का समूचा समाज तब अंग्रेजी सत्ता के आधिपत्य तथा प्रातंक के फलस्वरूप इन क्षेत्रों में सद्यः स्थापित शांति के सुखमय जीवन का आनंद लेता हुआ सहज श्रालस्य और अफीम की पीनक में निमग्न था । पाश्चात्य भावनाओं, आदर्शों, मान्यताओं तथा तौर-तरीकों के प्रथम प्राघात के फलस्वरूप गुजरात के सदियों से निश्चेष्ट अनुद्विग्न जीवन में जो प्रतिक्रियाएँ आगे चल कर होने वाली थीं, उनका तब कोई भी आभास नहीं देख पड़ रहा था। टॉड ने इन सबको देखा और समझा तथा अपने इस ग्रंथ में उनका यत्र-तत्र संकेत भी किया है। ये ही सब अब इतिहास की बातें हो गई हैं, जो बाद की घटनाओं के कारणों को समझने में सहायक होती हैं अतः उनका विशेष गहराई के साथ अध्ययन और विवेचन अत्यावश्यक है ।
अंग्रेजों की तब चल रही नीति टॉड को कदापि रुचिकर नहीं थी । वह उसकी समालोचना ही करता था । वह अच्छी तरह से जानता था कि देशी राज्यों के साथ तब की गई 'सहायक संधियों' का अंत कहीं जाकर होने वाला था । भाला जालिमसिंह के शब्दों में 'वह दिन दूर नहीं [ था ] जब समस्त भारत में एक ही सिक्का चलेगा'; और टॉड सदैव ही राजपूताना आदि क्षेत्रों की अनोखी संस्कृति के इन अवशेषों पर विदेशी संस्कृति तथा सत्ता के अत्यधिक प्रभाव का विरोधी रहा। उसने अनुभव किया था कि- "ब्रिटेन के संरक्षण में जो विभिन्न जातियाँ श्रा गई हैं उनको सजा देते समय दया का व्यवहार बहुत कम किया जाता है और न्याय का डण्डा अवश्य ही किसी न किसी को मार गिराता है, जिससे हमारा शासन तलवार का शासन कहा जाता है ।" यही नहीं "हमारी सरकार द्वारा राज्य- कर तथा ग्रथं संबंधी जो भी कानून बनाये जाते हैं वे इनकी (प्रजाजनों की ) दशा सुधारने के दृष्टिकोण से नहीं वरन् हमारे कोष को भरने के लिये बनाए जाते हैं ।... अपने भारतीय प्रजाजनों की गाढ़ी कमाई से लाखों स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त करके उसका कौनसा भाग उनकी भलाई के लिए खर्च किया जाता है ?" पुनः " अभी तक कोई भी ऐसा विधानशास्त्री सामने नहीं आया है कि जो 'रेग्यूलेशन्स' (नियम और पद्धति) कहलाने वाली इस विशाल एकत्रित अप्रोढ़ सामग्री को सरल संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत कर सके ।" १
१. पश्चिमी भारत की यात्रा, पृ० ६४-६७ से संकलित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org