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प्रकरण १३; सौरों ओर सीरियनों में समानता
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जिसमें निस्सन्देह उन्होंने अपनी गेटिक भारतीय प्रजा को भी सम्मिलित कर लिया था, बॅक्ट्रिया के राजाओं के लिए एरिया और अराकोशिया ( Arachosia ) में होकर सिन्धु घाटी द्वारा सौराष्ट्र में आना, रेतीले जंगलों और शत्रु-जातियों द्वारा अवरुद्ध सीरिया के लम्बे मार्ग का अवलम्बन करने की अपेक्षा अधिक सुगम था । हमारे भारतीय - सीरिया के लिए प्राचीन अधिकारी विद्वानों द्वारा प्रयुक्त सौराष्ट्रीनी ( Saurastrene ) चोर सायरास्ट्रीनी (Syrastrene ) शब्दों के लिए हमें अधिक परिवर्तन के बिना ही सौराष्ट्र शब्द मिल जाता है; और यदि हमें यहाँ के प्राचीन चाँदी के सिक्कों और चट्टानों पर खुदे हुए लेखों में प्रयुक्त, विचित्र किन्तु पूर्ण, लिपि के अक्षरों की पूरी जानकारी हो जाय तो हम कम से कम उन मुकुटधारी राजाओं के नाम तो जान ही सकते हैं, जिनकी मूर्तियाँ सिक्कों में अग्निवेदियों के दूसरी ओर ठपी हुई हैं और जिनके पार्श्व चित्र एरिया ( Aria ) के प्राचीन सूर्य एवं अग्निपूजक सासियों ( Sacae ) के साथ उनके प्राकृति-साम्य की स्पष्ट 'घोषणा कर रहे हैं । '
इस विषय में शङ्का करना व्यर्थ है कि सौर जाति के लोग, जिनका प्राचीन लेखकों के वर्णन द्वारा तथा उनके सूर्य और लिङ्ग आदि पूजा-चिन्हों के अवशेषों द्वारा परम शक्तिशाली होना सिद्ध है, उसी वंश के हो सकते हैं, जिसको हेरोडोटस ने सौरोमेटी ( Souromatea ) लिखा है । यह निश्चित है कि वे ही संस्कार, उन्हीं नामों से, अपरिवर्तित रूप में, उन्हीं पर्व के दिनों में, उन्हीं देवताओं के निमित्त भारत के प्रायद्वीपीय सीरिया में भी सम्पन्न होते हैं जो मध्य- सागर के तटवर्ती सीरिया में माने जाते हैं । श्रन्यत्र मैंने इस विषय को विस्तार - पूर्वक लिखा है अतः यहाँ पर इतना ही फिर कहूँगा कि सीरिया में जिसको बाल (Bal) अथवा बेलनूस (Belnus) कहते हैं वही सौरों के बालनाथ हैं और सोमनाथ का विशाल मन्दिर सीरिया - देशीय 'बालबेक' का ही प्रतिरूप है । निम्नलोक अथवा चन्द्र मण्डल का अधिष्ठाता होने के कारण सोमनाथ बाल' का ही आलङ्कारिक अभिधान है। पूजा के महान् उपकरण के साथ सूर्य, उसके लाक्षणिक प्रतीक प्राचारहीन इसरायलियों के "प्रत्येक पहाड़ी पर खड़े फैलस
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इस पुस्तक के रचनाकाल और लेखक की मृत्यु के पश्चात् इस दिशा में पर्याप्त कार्य हो चुका है, जिसका परिणाम लेखक की मान्यताओंों और अनुमानों की पुष्टि ही करता है। • Phallus फैलस की व्याख्या टॉड साहब ने अन्यत्र (Annals of Rajasthan' में) को है और लिखा है कि यह 'फलेश' का रूपान्तर है; शिव का नाम प्राशुतोष है ही ।
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