________________
२६८ ]
पश्चिमी भारत की यात्रा
आक्रमण के कारण उन्हें मरुस्थली में खेरघर छोड़ना पड़ा था । परन्तु हम इस विषय को गोहिल वंश की रूपरेखा के हेतु सुरक्षित रखेंगे क्यों कि इस वंश के लोगों का इस प्रदेश में अब भी राज्य मौजूद है और सौर प्रायद्वीप का एक उपविभाग गोहिलवाड़ा के नाम से प्रसिद्ध है । अब हम इस विभिन्नता युक्त प्रदेश में भली-भाँति प्रविष्ट हो चुके हैं और मुझे अपना आगे का मार्ग इसी में होकर पूरा करना है, अतः मैं समझता हूँ कि यहाँ के प्राचीन एवं वर्तमान इतिहास पर विशेषतः यहाँ पर राज्य करने वाली जातियों पर दृष्टिपात करने का सबसे उपयुक्त अवसर यही है ।
सौराष्ट्र का अर्थ है 'सौरों का देश', जो एक प्राचीन सूर्य-पूजक जाति है जिसके उद्भव का इतिहास प्रतीत के अन्धकार में विलुप्त हो चुका है । यह किसी प्रकार भी असम्भव नहीं है कि यह ऊपरी (उत्तरी ? ) एशिया की गेटिकभारतीय जातियों में से एक है जिनकी अतिरिक्त बस्तियाँ सभी दिशाओंों में बहुत पहले से इधर-उधर फैल गई थीं । इसका विश्वसनीय प्रमाण इतिहास से प्राप्त होता है क्यों कि अब तक बची हुई जातियों के लोगों के नामों और रीति-रिवाजों से भी उसकी पुष्टि हो जाती है । अवशिष्ट प्राचीन सूर्य मंदिरों के उपासक काठी, कोमानी ( Comani) और बालों में अब भी पाए जाते हैं जिनकी शारीरिक गठन एवं सूरत-शकल, पहले श्राकर बसी हुई जातियों के साथ रक्त सम्मिश्रण हो जाने के उपरान्त भी स्पष्ट ही उत्तर- निवासी जातियों से पैदा हुई जान पड़ती हैं ।
सौरों ने इस प्रायद्वीप पर कब अधिकार जमाया इसकी हमें कोई जानकारी नहीं है, परन्तु जस्टिन ( Justin) स्ट्राबां (Strabo), टॉलमी (Ptolemy) श्रौर दोनों एरियनों (Arrians) के आधार पर हम इस बात का पता लगा सकते हैं कि उनके आक्रमण का समय अलक्षेन्द्र ( Alexander) महान् का समकालीन था । सोरों के देश पर मोनान्डर ( Menander) और अपोलोडोटस् ( Appollodotus) की विजय के विषयों को लेकर विद्वान् बेयर ( Bayer) और स्ट्रॉबो ( Strabo) के फ्रेंच अनुवादकों ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है । वे EUPOV अथवा सौर को फोनिक्स (Pevinox ) से संयुक्त देख कर हिन्दमहासागर के सीरिया को मध्यसागर के सीरिया और फोनीशिया में परिवर्तित कर रहे थे । अपनी छिन्न-भिन्न अनी' [ सेना ] के अवशिष्ट भाग को लेकर,
१
राजपूत युद्ध - कला सम्बन्धी ग्रन्थ 'समर - सागर' में 'अनी' एक प्रकार के व्यूह का नाम लिखा है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org