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प्रकरण - १३; गोगो; शिलालेख
[ २६७ कर गहरे गोल-गोल गड्ढ़े-से पड़ गए हैं जिनसे इस बावड़ी की प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है। इस पर कुटिल-लिपि में एक शिलालेख के अवशेष भी दिखाई देते हैं परन्तु इसके स्थान पर गुजराती में एक नवीन शिलालेख लगा दिया गया है, जो ढाई सौ वर्ष से पुराना नहीं है । इसमें राजवाड़ा की 'गधा-गाळ' या शाप का उल्लेख है अर्थात जो कोई इस जलाशय को अपवित्र करेगा वह अपने माता-पिता को इस गर्दभ-युग्म जैसी प्रश्लील अवस्था में देखेगा। वहीं पर हमें अरबी और फारसी के लेख भी मिले जिनमें से एक पर 'जफरखां बिन वजीर उल मुल्क' (के राज्य में) 'शाह उल आजम शम्स उद्द, रिकउद्दीन, सुलतान मुजफ्फर' का नाम भी खुदा हुआ था। इस लेख की तिथि १० रजब, ७७७ (१३७५ ई०) है ।
अहमदाबाद के इतिहास की रूपरेखा तैयार करने के इच्छुक विद्वान् के लिए यह स्मारक बड़े महत्व की वस्तु है क्योंकि इससे ज्ञात होता है कि गोगो उस वंश की महत्त्वाकांक्षा का प्रथम लक्ष्य-बिन्दु था जिसने आगे चल कर विपुल वैभव प्राप्त कर लिया था। वजीर उल मुल्क टोक अथवा गेटिक-भारतीय जाति का स्वधर्म-त्यागी राजा था जिसके इतिहास का वर्णन में अन्यत्र' कर चुका हूँ। उसके पुत्र जफर खाँ को मण्डोर के राजपूत सरदार चूंडा ने चौदहवीं शताब्दी के अन्त में नागोर से निकाल दिया था। चूंडा मारवाड़ की वर्तमान राजधानी जोधपुर को बसाने वाले जोधा का पितामह था। राजपूतों के मध्य अपना संस्थान स्थापित करने के प्रयत्नों में जफर खाँ की असफलता उसके लिए वरदान सिद्ध हुई क्यों कि वहाँ यदि सफलता मिल भी जाती तो भी वह अधिक दिनों तक टिक न पाता; इधर, यहाँ अस्तव्यस्त पड़ी हुई नहरवाला की राजधानी में सामरिक विरोध का कोई विशेष अवसर भी उपस्थित न हुया और उसकी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए सहज ही में एक उपयुक्त क्षेत्र प्राप्त हो गया। इस लेख की तिथि से चौसठ वर्ष बाद वजीर उल मुल्क के पौत्र और जफर के पुत्र अहमद ने साबरमती के किनारे अपने नाम पर नई राजधानी बसाई। हमें इस विषय में कोई जानकारी नहीं है कि अहमद के पूर्वजों ने इस व्यापारिक बन्दरगाह (गोगो) को गोहिलों से किन उपायों द्वारा प्राप्त किया जिसको वे संवत् १२०० से अपने अधिकार में किए हुए थे जब कि कन्नौज से राठोड़ों के
' देखिए, राजस्थान का इतिहास, जिल्ब १, पृ. ९९, १०५ ।
इस प्रसंग में 'रा.प्रा.वि.प्र.' से प्रकाशित और अनुवादक द्वारा सम्पादित 'राजविनोद महाकाव्य' का 'प्रास्ताविक परिचय' भी द्रष्टव्य है।
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