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________________ २६४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा का अब कोई चिह्न प्रवशिष्ट नहीं रह गया है परन्तु इस प्राख्यान की सत्यता ग्यारहवीं शताब्दी में सिद्धराज द्वारा निर्मापित स्तम्भ पार्श्वनाथ के जैन मन्दिर के अस्तित्व से सिद्ध हो जाती है, जो अब मसजिद में परिवर्तित हो चुका है, फिर भी वह इस नगर में एक मात्र मुख्य दर्शनीय भवन है और हिन्दू एवं मुसलिम निर्माण कला का एक विचित्र सम्मिश्रित उदाहरण उपस्थित करता है । प्राचीन नगर के स्थान पर अब घना जंगल उग आया है और प्राचीन अवशेषों के नाम पर दो मन्दिर ही बताए जाते हैं - एक पार्श्वनाथ का और दूसरा महादेव का । आधुनिक काम्बे नगर में कुछ भी दर्शनीय नहीं है। अहमदाबाद के दरबार के किसी कृपापात्र का एक वंशज है, जो अपने निवास स्थान को बड़े गर्व के साथ 'महल' कहता है, और दिल्ली में सफदरजंग के नमूने पर बना हुआ बताता है । यद्यपि यह मकान उसके द्वारा सगर्व वर्णित मूल भवन से हुत भिन्न है, परन्तु मेरे द्वारा इस विषय में कुछ भी कहने से उसके सुखद विश्वास को ठेस पहुँचती और यह एक सहृदयतापूर्ण कार्य होता । हेमाचार्य के समय से बहुत पहले से ही और अब तक खम्भायत जैन - शास्त्राध्ययन का एक मुख्य केन्द्र रहा है और यहां पर नगर के भीतर जैन मन्दिरों की संख्या पचास अथवा साठ से कम नहीं है । जिस प्रकार अन्यत्र जहां-जहां जैनों की जन संख्या अधिक होती है वहां ग्रन्थ भण्डार होते हैं, उसी प्रकार यहां भी इस जाति का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ भण्डार है । यदि, बिना गड़ I २ १ निज़ाम राज्य के संस्थापक का दादा अब्दुल्ला खांन फीरोज जङ्ग बहादुर गुजरात का सूबेदार था। उसकी कब्र अब भी अहमदाबाद में मौजूद है। स्वयं निज़ाम भी थोड़े दिन अहमदाबाद का सूबेदार रहा था । खम्भात की गद्दी का संस्थापक मोमिन खांन बहादुर और उसका पुत्र मोमिन खान द्वितीय भी गुजरात के सूबेदार थे। मुगल सम्राट् की ओर से निज़ाम को 'निजाम-उल-मुल्क फतहजङ्ग बहादुर श्रासफजहां' का खिताब मिला और खम्भात के नवाब ने ' नजमुद्दौला मुमताज्उलमुल्क मोमिन खांन बहादुर दिलावरजङ्ग' का अलकाब पाया । १७६१ ई० में पानीपत की अंतिम लड़ाई के बाद गुजरात में बहुत से छोटे-छोटे राजा, ठाकुर और नवाब अपने-अपने रूप में स्वतंत्र हो गए। कर्नल टॉड का उक्त नवाब के ही वंशज से मिलना हुआ होगा। इस वंश का James Forbes लिखित विवरण Oriental Memoirs, Vol. I, Chap. XVI, 1834 में द्रष्टव्य है। खम्भात के 'शान्तिनाथ -ग्रन्थ भण्डार' से तात्पर्य है । राजशेखर सूरि ने अपने प्रबन्ध में लिखा है कि महामात्य वस्तुपाल तेजपाल ने खम्भात के ज्ञान भण्डार की स्थापना करने में ३००,००० द्रव्य व्यय किया था। इस भण्डार में 'धर्माभ्युदय-काव्य' की एक ताड़पत्रीय प्रति है जिस पर स्वयं वस्तुपाल के हस्ताक्षर मौजूद हैं । (चालू) Jain Education International For Private & Personal Use Only 7 www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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