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________________ २६२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा वह नगर खम्भात के प्रस्तित्व में आने से पूर्व अन्तःस्थलीय राजधानी का बन्दरगाह था । यह वृत्तान्त मेवाड़ के इतिहास से पूरी तरह मेल खाता है, जिसमें गजना को 'बाल- रायों' की राजधानी वलभी से दूसरी श्रेणी का नगर बताया गया है । श्रोमेटा के सामने हो एक छोटे-से ग्राम में मुझे कुछ हूणों की झोंपड़ियाँ भी मिलीं। वे अभी तक उसी प्राचीन 'हूण' नाम को बनाए हुए हैं जिसके द्वारा हिन्दू- इतिहास में उनका परिचय प्राप्त होता है। बड़ौदा से तीन कोस पर त्रिसावी (Trisavi) नामक ग्राम में भी उनके तीन अथवा चार वंशों का निवास स्थान बताया जाता है । यद्यपि इनके शरीर- गठन एवं वर्ण के द्वारा तातार कहलाने वाले हूणों से इनका कोई सम्बन्ध व्यक्त नहीं होता और इस परिवर्तन का कारण जलवायु एवं रक्त संमिश्रण हो सकता है, फिर भी इसमें सन्देह नहीं है कि वे उन्हीं अाक्रमणकारियों की संतानें हैं, जिन्होंने दूसरी एवं छठी शताब्दी में सिन्धु नदी के तट पर साम्राज्य स्थापित किया था और जो राजपूतों में इतने घुलमिल गये थे कि जीट (Gete), काठी और मध्य एशिया से श्राने वाली उन अन्य सासी ( Sacae) जातियों के साथ-साथ उन्हें भी भारत के छत्तीस राजवंशों में स्थान प्राप्त हो गया था, जिनके वंशज अब तक सूर्योपासक सोरों अथवा चावड़ों की भूमि पर बसे हुए हैं । निस्सन्देह, ये उन्हीं जातियों में से एक हैं । इन समस्त विदेशी जातियों के लिए यदि हम जेटी - भारतीय (Indo-Getae) अथवा सासी भारतीय ( Sacae - Indian ) पदों का व्यवहार करें तो वे नासमझी से प्रयुक्त होने वाले इण्डो- सीथिक ( Indo - Scythic ) पद की अपेक्षा अधिक उपयुक्त होंगे । प्राचीन काम्बे, जिसको देशी भाषा में खम्भायत कहते हैं और जो अब उजड़ा पड़ा है, वर्तमान नगर से तीन मील की दूरी पर है। इसका नाम प्राचीन 'काल में 'पापावती' अथवा 'पाप की नगरी' था।' इसका यह नाम उस स्थान के समीप स्थित होने के कारण पड़ा है जहाँ मही नदी पापासिनी खाड़ी में प्रवेश करती है । यह खाड़ी भी अपने भयावह रूप के कारण ही पापासिनी कहलाती है । कुछ " यहाँ के व्यापारी व्यवसाय के प्रसंग में असत्य भाषाणादि पापाचरण करते थे अतः अन्य लोगों ने इसको 'पापावती या 'पापनगरी' कहना शुरू कर दिया। कुछ लोगों का मत है कि खम्भात के भखात में एक स्थल 'गोपनाथ' कहलाता था जिसको दूसरी शताब्दी के ग्रीक लेखकों ने 'पापिके' (Papike) लिख दिया (देखिये, पॅरिप्लुस ऑफ द इरिथिन सी, पृ०६८) और यही भागे चल कर इसके नाम में 'पाप' का अभिशाप बन गया । परन्तु, यह अनुमान मात्र लगता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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