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पश्चिमी भारत की यात्रा है, जिसका मिल्टन' ने 'वीराङ्गनाओं की विशाल ढाल सदृश' कह कर वर्णन किया है। इसी से आगे चल कर 'बड़ोदा' हो जाना सहज है और यहाँ का स्वामी गायकवाड़ भी नगर का यही नाम बनाए रखने में सन्तुष्ट प्रतीत होता है।
बेले (Bayley) ने भी मीरात-ए-सिकन्दरी में लिखा है-महमूद बैगड़ा के लड़के ने बड़ौदा जिले में एक शहर बसाया था, परन्तु फरिश्ता और तबकात-ए-नासिरी में कहा गया है कि उसने केवल बड़ौदा का नाम दौलताबाद में बदल दिया था। मीरात-ए-अहमदी से ज्ञात होता है कि उसने बडोदरा ग्राम के पास ही शहर बसाया और उसको भी उसी में सम्मिलित कर दिया।-Bayley, p. 244.
कर्नल टॉड ने लिखा है कि उन्हें बड़ौदा में कोई ऐसी प्राचीन वस्तुएँ नहीं मिलीं जो उनके अनुसन्धान में सहायक होती; पिछले वर्षों में पर्याप्त शोध हुई है और बड़ोदा क्षेत्र में बहुत सी सामग्री मिली है। जिज्ञासु विद्वानों को इसके लिए Baroda Through the Ages नामक पुस्तक देखनी चाहिए, जो बड़ौदा विश्वविद्यालय से १६५३ ई० में
प्रकाशित हुई और जिसके लेखक बेन्डापुडी सुब्बाराव हैं । , " x x x x x Those leaves,
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Paradise Lost, IX ग्रीक माइथॉलाजी में 'अमेज़न' वीरगनाओं का वर्णन पाता है। ये सदैव शस्त्रास्त्रों से लैस रहती थीं और अपना दाहिना स्तन इसलिए कटवा देती थीं कि वह तलवार चलाने में बाधक होता था। ये अपनी पुं-संतानों को भी मरवा देती थीं। इनकी ढालें वट-पत्र की आकृति की होती थीं।
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