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________________ प्रकरण १२; खेड़ा [ २५५ का पर्यवसान मृत्यु में है" इसी विश्वास के साथ और उसी के कोष में से दूसरे प्रसिद्ध नीतिवाक्य " बड़े से बड़े दिन के बाद रात आती ही है" को सामने रखते हुए मैंने इनका अक्षरश: पालन किया है और इन्हें सभी समय के सभी दर्शनों के लिए उपयुक्त भी पाया है, चाहे वह सांख्य ( Sanchya ) का मत हो अथवा प्लेटो का । खेड़ा में मुझे मेरे पुराने मित्र और ( बॉनी कैंसल के ) सहाध्यायी सम्मान्य कर्नल लिंकन स्टेनहोप मिले जो उस समय सम्राट् की १७ वीं घुड़सवार सेना के नायक थे । जब से वे भारत में पहले पहल प्राये थे तभी से हमारा पत्रव्यवहार चल रहा था; और, पिण्डारी-युद्ध में तो मेरे एक अधीनस्थ अधिकारी एजेण्ट के द्वारा उज्जैन से सूचना पहुँचाने पर वे अपने रिसाले को लेकर भागे बढ़ गए और एक ऐसा वीरतापूर्ण आक्रमण कर दिया कि जिसको इन लुटेरों की सेना सदैव ही याद करती रहेगी। हम दोनों प्रायः एक ही समय योरप लौटने वाले थे इसलिए हमने यह निश्चय किया था कि हम लोग साथ-साथ ही स्वदेश जायेंगे और 'लिबानस-निवासिनी' उसी नाम वाली सुप्रसिद्धं महिला से मिल कर उसको नमस्कार करेंगे । परन्तु, पिछले छः मास के कठिन परिश्रम ने मेरे शरीर और मस्तिष्क को इतना थका दिया था कि मैं अपने साथी के लिए भारस्वरूप ही सिद्ध होता । इसलिए मैंने अपना यह बहुत दिनों का विचार छोड़ दिया, यद्यपि मुझे उन मित्र के साथ स्थानीय पर्यवेक्षण के उपरान्त हिन्दू, frat और सीरियन धर्मों एवं स्थापत्य सम्बन्धी भेदों के विषय में असाधारण परिणाम ज्ञात होने की आशा थी । में अपने मित्र के आतिथ्यपूर्ण घर में एक सप्ताह पर्यन्त, खेड़ा में ठहरा और इस अवधि में आगे की यात्रा के लिए अपने को पर्याप्त स्वस्थ अनुभव करने लगा । खेड़ा में भी अनुसन्धान के लिए बहुत कुछ क्षेत्र था। दीवारों के बड़े-बड़े ढेर बता रहे थे कि इस स्थल पर कभी कोई बड़ा प्रमुख नगर था, और वहाँ पर थोड़े ही दिनों के मुकाम में मैंने कुछ चाँदी के सिक्के अपने संग्रह में बढ़ा लिए, जो वहीं के खण्डहरों में प्राप्त हुए थे । इन सिक्कों पर कोई लेख तो नहीं था परन्तु कुछ विचित्र से निशान अवश्य बने हुए थे । पेरे मित्र कर्नल स्टेनहोप ने भी मेरे सिक्कों की संख्या में दो अथवा तीन की वृद्धि कर दी थी। इस प्रकार यदि शोध एवं अनुसन्धान को प्रोत्साहन दिया जाय तो भारतवर्ष के सभी भागों में बहुत कुछ किया जा सकता है । परन्तु, एक बात मैं यहाँ पर फिर दोहरा रहा हूँ जिस पर मैंने प्रायः बल दिया है; वह यह है कि सिक्कों, प्रत्येक भाँति की प्राचीन सामग्री, प्राचीन शिलालेखों एवं हस्तलिखित ग्रंथों के संग्रह के विषय में प्राचीन भारत की छानबीन करने में अंग्रेज लोग किसी से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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