SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा बैठते हैं, व्यर्थ ही अपने जूतों को पानी में पैरों से टटोलते हैं और आपको मालूम होता है कि पानी रोकने के लिए शाम को जो डौल खड़ी की गई थी वह वर्षा के ज़ोर से टूट चुकी है और पानी के छोटे-छोटे झरने आपके बिस्तर के नीचे इधर-उधर बहने लगे हैं; आपको उस समय अत्यन्त प्रसन्नता होगी जब आपके रक्षा-तत्पर नौकरों और सिपाहियों के सम्मिलित प्रयत्नों से डेरा की रुख में तब तक रुका रहता है जब तक कि टूटे हुए बाँस के स्थान पर गीली और नरम मिट्टी में नए बाँस नहीं गाड़ दिये जाते हैं । इसी बीच में पानी 'अपनी करनी कर चुकता है,' प्रापका बिस्तर तरान्तर हो जाता है और पके पास, यदि किसी तरह बच गए हों तो, कपड़े बदलने और लम्बलम्बायमान शेष रात्रि को टेबिल पर पैर फैला कर काटने के सिवाय और कोई उपाय नहीं बच रहता; अथवा यदि 'प्रकृति की कोमल धात्री " दौड़ कर किसी और जगह नहीं गई और आप ही के डेरे में आ गई है तो रात भर अपने बिछौने के तले उसकी तलाश करते रहिए- यदि बिछावन घोड़े के बालों का बना हुआ है और अधिक भारी नहीं है तो आपको कुछ आराम मिल सकता है परन्तु साथ ही प्रातः काल में थोड़े-से मीठे-मीठे (गठिया के ) दर्द भी अनुभव होने लगेगा । ऐसी थकान भरी रात और दुःख और दर्द-भरे दिन के बाद भी यात्रा - प्रेमी को पूर्ण सजग रहना पड़ेगा; यदि उसे किसी शिलालेख अथवा प्राचीन मन्दिर का पता मिल गया तो समयाभाव या पानी की दुनिया उसके अनुसन्धान में बहाना बन कर नहीं आ सकती । घटनाओं और नवीनताओं में रस लेने वालों के लिए तो इन सभी विचित्रताओं का उल्लेख करना आपके लिए आवश्यक है और विनोद का भाव लाने का भी प्रयत्न करना ही पड़ेगा, भले ही आपकी रचना में आपके लिए उसका एक कण भी न हो । उदाहरण के लिए, किसी ऐसी ही रात के बाद जब आपका घोड़ा डेरे के द्वार पर खड़ा है, कपड़े गीले हो गए हैं, सड़क पर घुटनों तक कीचड़ है, रात का हल्लागुल्ला आपके कानों में भरा पड़ा है, 'डब्बे' में मुर्गियाँ भीगी हुई बैठी हैं, आपका प्यारा घोड़ा पीड़ा से जकड़ा हुआ खड़ा है; इनके अतिरिक्त भी छोटे-मोटे सभी कष्ट हैं, जो शरीरधारियों को हो सकते हैं - परन्तु इन सबका इलाज एक ही है-कूच करना और नईनई घटनाओं एवं दृश्यों से, वे भले हों अथवा बुरे, पिछली घटनानों को भुला देना । सैंको (Sancho) से अच्छा दर्शन और किसी का नहीं है "सभी दुःखों • श्वा मुखी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy