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________________ प्रकरण - १०; वर्षा ऋतु में यात्रा की कठिनाइयाँ [ २५३ लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध हो सकती है, विशेषतः गुजरात जैसे देश में । दिन में बड़ी कठिनाई रहती है; पहले, मार्ग में भीगे हुए परिकर को सुखाने का प्रयत्न करना; फिर, जब वरुण और अग्नि देवता ( जल और आग ) प्रभुत्त्व के लिए सङ्घर्ष कर रहे हों तो आकाशमण्डप के नीचे खुले में भोजन बनाना; ऊँट जुगाली करने में मगन हैं तो नतग्रीव घोड़े वर्षा की निर्दय फुहारों का सामना करने में डटे हुए हैं, प्रत्येक मोड़ पर उनकी प्रयाल में से, ओस की बूंदें नहीं, बाल्टी भर पानी गिरता है; उधर, आदमी बेचारे ठिठुरते हुए, उदास-से होकर चुपचाप चलते रहते हैं । सिपाही कहता है 'ऐ भाई, मेरा खाना किस सूरत से पकेगा ?' उसे भय है कि आज तो चबेनी खा कर ही गुज़र करना पड़ेगा और घी की चित्ताकर्षक सुगन्धि एवं धीरे धीरे पकने का शब्द और आटे की रोटियों का पेलियॉन ( Pelion' ) जैसा लघु पहाड़ उसकी इन्द्रियों को तृप्त नहीं कर सकेंगे । उससे भी अधिक विलासप्रिय पठान अश्वारोही व्यर्थं ही मिस्री 'मांस-पात्र' की कामना कर रहा है । जब देवता उनकी प्रार्थना सुन लेते हैं तो सम्भवतः सूर्य को प्राज्ञा होती है कि वह इन्द्र के प्रावरण को भेद कर वरुण के राज्य का क्षय कर दे; ऐसे समय में सभी लोग हँसते-बोलते अपने-अपने कोनों में से निकल पड़ते हैं और जब तक धूप निकली रहे तभी तक हाथोंहाथ भोजन बनाने में जुट जाते हैं । परन्तु यदि जल का देवता ( वरुण ) वश में नहीं होता और सूर्य अन्धेरे में जाकर बैठ जाता है तो मुसलमान अपना कपड़े में लिपटा हुआ कल का बासी खाना खोलता है, जब कि [ हिन्दू ] सिपाही के धर्म में बासी भोजन वर्जित है इसलिए उसे भुने हुए चने खा कर पानी पी लेने के अतिरिक्त और कोई चारा ही नहीं रहता । चना और पानी की उसके लिए कोई कमी नहीं है । फिर, सब दृश्य रात में बदल जाता है और वे आज के चूके हुए भोजन को कल दुगुनी मात्रा में प्राप्त कर लेने के सपने देखने लगते हैं; परन्तु, 'आँधी प्राया' की एक समस्वर पुकार शायद उनके स्वप्नों को भङ्ग कर देती है । बिना बिगुल बजाए ही सभी लोगों के हाथ गिरते हुए पाल को रोकने के लिए एक साथ निकल पड़ते हैं । वास्तव में, उस समय जाग पड़ने में बड़ा आनन्द आता है जब आपके डेरे की भीगी हुई कनात आ कर आपके पटिये से टकराती है और खलासी ज़ोर से चिल्ला पड़ते हैं, "उठो साहिब, डेरा गिरा जाता ( है ) " । आप उठ • पेलियॉन ( Pelion ) थिसेली के एक पहाड़ का नाम है, जिसको दैत्यों ने श्रोसा (Ossa) पर परत पर परत जमा करके देवताओं के निवास श्रोलिम्पस पर्वत को मापने के लिए खड़ा किया था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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