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________________ २५२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा कर चुकी है तो लेखनी द्वारा प्रयास करना तो ज्यादती ही होगी। जिन लोगों को हिन्दू-अरबी स्थापत्य में रुचि हो, मैं उन्हें टिप्पणी में दिए हुए ग्रन्थ' का अवलोकन करने के लिए अनुरोध करूँगा। खेड़ा (Kaira)-मुझे इस बात से प्रसन्नता हुई कि इसी स्थान पर विश्राम करना था और विशेषतः इसलिए कि इ. विश्राम-स्थान तक, जहाँ मुझे वर्षा का प्रकोप बढ़ता हुआ जान पड़ा था, मैं घुड़सवारी कर के जल्दी ही आ पहुँचा था। "बादल पर बादल जमा हो रहे हैं, समीपवर्ती आकाश की श्यामल भौहों ने तेजोमय सूर्य के मुख-मण्डल को आवृत कर लिया है, जो अपने वायु-मण्डलीय सिंहासन पर विराजमान हो कर निरभ्र, प्रकाशमान और शान्त गम्भीर प्रताप (तेज) के साथ समस्त पृथ्वी पर शासन करता है। आकाश-मण्डल पर भय का जादू छा गया है, यह वह जादू है, जिसको प्रतिभावान् कवि की अन्तर्दृष्टि ही देख सकती है और उसका कोमल हृदय ही इसके आकर्षण का अनुभव कर सकता है।" 'वर्षा प्रारम्भ होने पर' भारत में किसी यात्री के भ्रमण का वृत्तान्त, पढ़ने में, कितना ही मनोरञ्जक क्यों न हो, परन्तु उस स्वयं के लिए इसमें कोई विशेष प्रानन्द नहीं रहता, और उसके साथियों के लिए तो बिलकुल ही नहीं। हाँ, किसी चित्रकार के लिए तो वर्षा में अपने डेरे में बैठ कर कला की साधना करने के "Scenery and Costumes of Western India" by Captain Grindlay. यह पुस्तक Smith Elder & Co., London से १८३० ई० में प्रकाशित हुई है। इसमें पश्चिमी भारत के बहुत से प्राचीन और सुन्दर अवशेषों के चित्ताकर्षक मुंह-बोलते चित्र छपे हैं, जो कैप्टेन ग्राइण्डले द्वारा तैयार किए गए थे। प्रत्येक फलक के साथ एक परिचयात्मक टिप्पणी भी दी गई है। फलक सं० ५ में अहमदाबाद की झूलती हुई मीनारों का चित्र है। उसके साथ की टिप्पणी में कैप्टन ग्राइण्डले ने लिखा है'बहुत सी मसजिदों और अन्य धार्मिक इमारतों के पत्थरों पर जो अत्यधिक कुराई का काम हो रहा है उससे उस समय की विकसित और उच्चस्तरीय कला का परिचय मिलता है । निस्सन्देह, इनमें अति प्राचीन उस हिन्दू स्थापत्य का अनुकरण किया गया है जिसके नमूने प्रान्त भर में फैले हुए मिलते हैं और यह भी निविवाद है कि इन मुसलिम इमारतों का निर्माण भी हिन्दू धर्मावलम्बी कारीगरों के हाथों से ही हुआ है। केवल इतना-सा अन्तर आ गया है कि इनमें से उन देवताओं और जीवित प्राणियों की प्राकृतियों को कम कर दिया गया है, जो मोहम्मद के धर्मानुसार स्पष्टतः वर्जित हैं। Plate No. s Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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