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प्रकरण • १२, अहमदाबाद
[ २५१ का इससे अधिक प्रबल उदाहरण और क्या हो सकता है कि राजनैतिक महत्ता का विकास क्रमिक होना चाहिए और बड़े बड़े राज्य एवं राजधानियों को,मानव-शरीर की भाँति, बलपूर्वक बढ़ाना अशक्य है। जो लोग इस नगर में स्थापत्य-कला सम्बन्धी (जिसके कतिपय उदाहरण अद्यावधि वर्तमान हैं) विषय पर विचार करते समय उन मस्तिष्कों को कुछ भी श्रेय देना नहीं चाहते, जिन्होंने इसका निर्माण किया है, उन्हें भी राजपूतों के प्रति मेरी अपेक्षा (उदार अर्थ में) अत्यधिक पक्षपात करना होगा क्योंकि हम उन अनमेल तत्वों के सम्मिश्रण की ओर से आँखें बन्द नहीं कर सकते जो सुन्दर से सुन्दर इमारतों में, विशेषतः स्तम्भों एवं उनकी सजावट में, प्रयुक्त हुए हैं और जो मुसलमानों द्वारा रूपान्तर के भरसक प्रयत्न करने के उपरान्त भी पुकार पुकार कर अपने हिन्दू उद्गम का डिण्डिमघोष कर रहे हैं। यह बात स्पष्ट और प्रत्यक्ष है कि अहमदाबाद को खड़ा करने के लिए चन्द्रावती और अणहिलवाड़ा को ध्वस्त ही नहीं किया गया अपितु पुननिर्माण का कार्य भी किसी हिन्दू शिल्पी द्वारा ही हुआ है । परन्तु, इन सब असंगतियों के होते हुए भी हमें उस धैर्य और कौशल की तो प्रशंसा करनी ही होगी जिसके द्वारा सभी कठिनाइयों को परास्त करते हुए हिन्दू शैली के स्तम्भाधारों पर अरब शैली की इमारतें इस प्रकार खड़ी की गई हैं कि वे
आंखों में बिलकुल नहीं खटकतीं । मुसलमानी और हिन्दू स्थापत्य का जो अन्तर यहां एकत्र लक्षित है उससे अधिक स्पष्टता शायद ही कहीं देखने को मिले; एक नुकीली, ऊँची और हवादार [इमारतों से युक्त है तो दूसरा स्थापत्य दृढ़, विशाल और गौरवपूर्ण है। मेरा विचार है, यद्यपि ग्रीशियन और गॉथिक शैलियों की भांति इसलामी और हिन्दू दोनों ही शैलियों के प्रशंसक मिल जायेंगे, परन्तु यदि संयुक्तता को छोड़ कर मत लिए जावें तो, इसलामी शैली को मत अधिक प्राप्त होंगे। - गहरे कटावदार हिन्दू भवन-समूहों को देखने पर एक चित्र-सरीखी श्यामल छाया गम्भीरतम दृश्य को उपस्थित करती है और वे मेघाच्छन्न आकाश से अधिक साम्य लिए हुए तथा अपने पिरामिड जैसे शुण्डाकार शिखरों के चारों ओर खेलते हुए तूफानों की शक्ति पर एक तिरस्कारपूर्ण हँसी हँसते हुए-से जान पड़ते हैं, जब कि किसी गुम्बददार मसजिद और इसकी परियों-जैसी गगनचुम्बी मीनारें उसी समय सुन्दरतम दृश्य उपस्थित कर पाती हैं जब प्रकृति शान्त होती है अथवा जब निरभ्र आकाश से किसी खिड़की की रंगीन चौखट में होकर आती हुई-सी सूर्य-रश्मियाँ संगमर्मर की गुम्बद पर अबाध गति से खेल रही होती हैं। परन्तु, जब इस विषय में पेंसिल ही इतना अधिक और सुन्दर चित्रण
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