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प्रकरण १२
यात्रा चालू अहमदाबाव; यहाँ का स्थापत्य, अहिलवाड़ा के अवशेषों का इसमें उपयोग; हिन्दू शिल्पियों की कला; हिन्दू पौर इसलामी शैलियों की तुलना; खेड़ा (Kaira): वर्षा ऋतु में यात्रा की कठिनाइयाँ ; प्रानरेबुल कर्नल स्टेनहोप (Stanhope); खेड़ा की प्राचीन वस्तुएँ; मही नदी का संकटमय मार्ग; एक सईस डूब गया; बड़ौदा; रेजीडेण्ट मिस्टर पलियम्स के यहां डेरा; बड़ोदा का इतिहास ।
अब जून में वर्षा अच्छी तरह जम गई थी और हमको घोड़ों के खुर-डूब कीचड़ में होकर यात्रा करनी पड़ रही थी। किसी पाराम की जगह तक पहुंचने के लिए डेढ़-सौ मील की यात्रा मुझे पूरी करनी थी। इस किंचित् निम्नोन्नत रेतीले मैदान में वर्णन-योग्य और कोई नई बात नहीं थी-केवल इतना ही कि यह सदा-हरे खोयेनी (Khoenie) के पेड़ों से भरा हुआ था, जो 'बाल-का-देश' की विशेष वनस्पति माने जाते हैं । 'बाल-का-देश' गुजरात के उस भाग का नाम है जो बनास नदी और सौराष्ट्र के मध्य में स्थित है। वास्तव में, यह मरुस्थली अथवा महा-मारव की दक्षिणी सीमा है, परन्तु यहाँ की रेतीली सतह के नीचे ऐसी अच्छी मिट्टी है जो मक्का की फसल और घास के लिए बहुत उपयोगी समझी जाती है और साथ ही आलू भी इसके पेटे में अच्छे बैठ सकते हैं।
तीन लम्बी मंजिलें मुझे अहमदाबाद ले आईं, जो अणहिलवाड़ा का प्रतिस्पर्धी नगर है; और, मैंने मुजफ्फरवंशी बादशाहों के एक सुन्दर ग्रीष्म-प्रासाद में डेरा किया जहाँ से में उनके अचिरस्थायी किन्तु दीप्तिमान वैभव की कल्पना उन मसजिदों और मदरसों' (Madrissas) को देख कर कर सकता था जिनकी गुम्बदें और मीनारें अपना सिर उठाए उन रास्तों में खड़ी थीं जिनमें कभी बड़ी भीड़-भाड़ रहती होगी और जो अब चुप-चापी व बरबादी के घर बने हुए थे । अहमदाबाद, माण्डू एवं अन्य नगरों में विजेताओं द्वारा छोड़ी हई पर्याप्त सामग्री को देख कर ऐसा लगता है कि आदिम जातियों के खण्डहरों में उनकी स्थिति क्षणभङ्ग र कीड़े-मकोड़ों के जीवन के समान थी; इस बात
१ फरिश्ता- (भा. ४; पृ. ६७) में लिखा है कि गुजरात के विद्या-प्रेमी मुजफ्फर शाह द्वितीय
ने फारस, अरब और तुर्की से विद्वानों को बुला कर गुजरात में बसाया था और मदरसे कायम किए थे।
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