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________________ २४८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा भी होता तो शोध के इस नवीन क्षेत्र में नियोजित करने के लिए प्रतिलिपिकर्ता उपलब्ध नहीं थे । अतः मैं यही आशा करता हूँ कि मेरे इस अन्वेषण से दूसरे लोगों का मार्ग-दर्शन हो सकेगा। इस विषय में पूर्ण सावधानी और शिष्टाचार से काम लेना चाहिए; शक्ति-जैसी चीज का स्वल्पमात्र प्रयोग होने पर तो प्रत्येक प्रति को सदा-सर्वदा के लिए मोहर-नन्द किया जा सकता है क्योंकि, जैसा कि पहले कहा जा चुका है, इस संग्रह की रखवाली बड़े सन्देह-पूर्ण ढंग से की जाती है और जिनका इसमें प्रवेश है वे ही इसके बारे में कुछ जानते हैं। जब अल्ला (उद्दीन) ने पट्टण पर आक्रमण किया उस समय तो यह सम्भव नहीं था कि प्राचीन पट्टण के परकोटे के बाहर इन लोगों ने ऐसा सुरक्षालय बनाया हो और, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि नगर के इस भाग का नाम अब भी अणहिलवाड़ा ही है, हमें यह विश्वास करने के लिए और भी कारण मिल जाते हैं कि आधुनिक नगर का यह भाग प्राचीन सीमाओं के अन्तर्गत था। किरी निश्चित दूरी [सी पा] में रहने वाले गच्छ के सदस्यों को इस ग्रन्थालय से ग्रन्थ उधार दिए जा सकते हैं परन्तु वे उन्हें दस दिन से अधिक नहीं रख सकते। ___ जब तक अणहिलवाड़ा के भूगर्भस्थित 'भण्डार' में हमारी कुछ गति न हो जाय, जैसलमेर के प्रोसवालों के विषय में विशेष ज्ञान एवं वहाँ के ग्रंथ भण्डार में, जहाँ पट्टण के भण्डार जितनी ही संरया में और सम्भवतः अधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ विद्यमान हैं, हमारी पहुँच न हो जाय, और सबसे बड़ी बात यह कि जब तक जैन-मत के बड़े बड़े आदमियों एवं ग्रंथपालों से हमारा कुछ परिचय न हो जाय तब तक हम इस स्थिति में नहीं पहुँच सकते कि जैनों की बौद्धि क-सम्पदा के विषय में कोई प्रशंसा कर सकें। ऐसी स्थिात में तो हम उस दम्भपूर्ण मिथ्याभिमान के प्रति दयाभाव ही प्रदर्शित कर सकते हैं, जिसने इस विचार को प्रेरणा दी है कि हिन्दुओं के पास कोई ऐतिहासिक लेख सामग्री नहीं है और जिसके द्वारा इस प्रकार के अन्वेषणों को व्यर्थ का प्रयास घोषित करके जिज्ञासा की भावना को दबा देने का प्रयत्न मात्र किया गया है। इन गुप्त भण्डारों से लाभ उठाने की व्यावहारिकता के विषय में मुझे अपनी गतिविधि का तो थोड़ा ही भरोसा है। वर्षा और अत्यन्त बिगड़े हुए स्वास्थ्य के कारण मुझे बड़ौदा ठहरना पड़ा। वहाँ के रेजीडेण्ट की कृपा और प्रभाव से प्रेरित होकर गायकवाड़ के एक मंत्री ने, जो स्वयं जैन थे, 'वंशराज-चरित्र' की एक प्रतिलिपि के लिए पत्र लिख दिया था। उसके लिए 'हाँ' भर ली गई, और मैं इस राजवंश के इतिहास का उद्धार करने के लिए, जिससे हमें विक्रम और वलभी के राजाओं तक का पिछला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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