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पश्चिमी भारत की यात्रा
महान् आचार्य के इस राज-शिष्य के पूजा-सत्कार में अब भी आधुनिक पट्टण के निवासी जैनों की ओर से कोई कमी नहीं आई है; यद्यपि इस वंश के प्रथम और अन्तिम राजा पाट-परमार और धारावर्ष के समयों को भी इतना काल बीत चुका है कि यह देवोपम सत्कार अत्यन्त प्राचीन हो चुका होता, परन्तु फिर भी स्वयं पाव (नाथ) के चढ़ी हुई केसर चावड़ा राजा को अब भी प्राप्त होती है। ग्यारह सौ वर्ष बीत जाने के बाद भी आज इस साधारण सी बात से हमें सौर वंशराज के जीवन की एक विवादहीन व्याख्या प्राप्त होती है, जिससे यह सिद्ध होता है कि उसके पूर्वज किसी भी धर्म के मानने वाले रहे हों, चाहे वे बाल-शिव के उपासक हों अथवा साधारण सूर्य-पूजक, परन्तु वह बुद्ध का अनुयायी हो गया था। उधर, सर्व-मान्य प्रथा के अनुसार नया नगर अपने नाम से न बसाने के कारण यह भी निष्कर्ष निकलता है कि इसका आदिसंस्थापक वह नहीं था।
मैं यहां पर यह भी बता दूकि नवपुर अथवा नये नगर में और भी बहत से मन्दिर हैं-यद्यपि उनमें विशेष उल्लेख करने जैसी कोई बात नहीं है। दो मन्दिर रघुनाथजी के नाम पर हैं और वे कुम्हारों और सुनारों के बनवाए हुए हैं। तीर।, महालक्ष्मी अथवा धन की देवी का मन्दिर है जो बर (Burr) जाति के वैश्यों ने त्रिपोलिया नामक दरवाजे के पास बनवाया है। इसी जाति के लोगों ने एक और भी मन्दिर बनवाया है, जो गोवर्द्धननाथ अथवा हिन्दुओं के अपोलो [इन्द्र देवता ?] का है । गूजरी दरवाजे पर द्वार रक्षक हनुमान की मति है
और एक अन्य द्वार पर सिद्ध भिक्षुत्रों के आराध्य सिद्धनाथ महादेव की मूर्ति विराजमान है।
अब हम दूसरे उल्लेखनीय विषय पर आते हैं-वह है पोथी-भण्डार अथवा पुस्तकालय, जिसकी स्थिति, मैंने उसका निरीक्षण किया उस समय तक, बिलकुल अज्ञात थी। यह भण्डार नए नगर के उस भाग में तहखानों में स्थित है जिसको सही रूप में अणहिलवाड़ा का नाम प्राप्त हुआ है। इसकी स्थिति के कारण ही यह अल्ला [उद्दीन) की गिद्ध दृष्टि से बच कर रह गया अन्यथा उसने तो इस प्राचीन प्रावास में भी कुछ नष्ट कर दिया था। यह संग्रह खरतरगच्छ की सम्पत्ति है, जिसम आम्र पार हेम 'श्रीपूज' थे। इस खरतर अथवा रट्टर (Orthodox) (दीर्घकालीन आध्यात्मिक विषयों पर शास्त्रार्थ के पश्चात् सिद्धराज द्वारा प्रदान किया हुया पद) शाखा में उपासकों की संख्या अन्य गच्छों की अपेक्षा सब से अधिक है, जो गणना करने पर सिन्धु से कन्याकुमारी तक ग्यारह गौ शिष्यों से कम नहीं मिलेंगे। यद्यपि प्रत्येक खरतर-नामधारी
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