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प्रकरण . ११; शिलालेख, कालीकोट
[२४५ पुत्र नागेन्द्र जिसके पुत्र प्रसोरा (Asora) ने संसार में से धन का सार प्राप्त किया जिससे श्रीमान् महाराज वंशराज के मन्दिर में कीतिलता को विकसित करने के निमित्त उसके पुत्र अरिसिंह ने आशादेवी की मूर्ति प्रतिष्ठित की; प्रतिष्ठा की विधि शीलगुण सूरि प्राचार्य के पुत्र देवीचन्द्र सूरि ने सम्पन्न कराई।"
ये शिलालेख या तो अणहिलवाड़ा के संस्थापन-समय के ही हैं अथवा उनकी प्रतिलिपियाँ हैं और इनमें से एक पर प्रारम्भ में कर अल्ला (उहीन) की प्रशस्ति तथा दूसरे में संवत् १३५२ का उल्लेख, जब उसने इस नगर को ध्वस्त किया था, केवल इसी बात का सूचन करते हैं कि वे उसकी प्रशंसा में अथवा उस विध्वंसक अत्याचारी से 'घणी खमा' की याचना के निमित्त लिखे गए होंगे। पहले शिलालेख में नगर के संस्थापक के असाधारण जन्म-सम्बन्धी कथा की रूपरेखा है जिसकी 'चरित्र' से पुष्टि होती है । दूसरे से एक महत्वपूर्ण तथ्य का ज्ञान होता है, वह यह कि उसमें देवत्व एवं अलौकिकता के गण विद्यमान थे । अस्तु, सम्भावना यही है कि यह मूर्ति उसके पूर्वजों के नाम पर बने हुए मन्दिर से प्राप्त की गई होगी, जो उस महा-संहार के समय 'ढाह' दिया गया था; अथवा यह भी हो सकता है कि उन्होंने उसके मन्दिर को ही पाव (नाथ) के मन्दिर में परिवर्तित कर दिया हो और इसी में इस पूर्व देशवासी भक्त ने अपनी रक्षिका प्राशा देवी को भी एक पाले (niche) में पधरा दिया हो। हम सहज ही में यह निर्णय नहीं कर सकते कि मोर जाति का यह वंश द्वितीय वर्ष में था या तृतीय में, अथवा ये लोग सैनिक (राजपूत) थे या व्यापारी (वैश्य), परन्तु साधारणतया राजपूत शत्रुओं से तलवार के बल पर प्राप्त की हुई धन-सम्पत्ति के अतिरिक्त ये और किसी प्रकार के धन की बात नहीं करते; अतएव ये लोग सम्भवत: राजपूतों की उस बड़ी खांप में होंगे जिन्होंने जैन-धर्म में परिवर्तित होकर इसके अहिंसक सिद्धान्तों के पालनार्थ शस्त्रों के व्यवसाय के स्थान पर व्यापार को अपना लिया था। परमारों और चौहानों, दोनों ही राजपूत-वंशों में मोर या मोरो नाम की उप-जाति होना पाया जाता है और 'पाशा' चौहानों की कुल देवी है; इसलिये यह धनी व्यक्ति इसी जाति का व्यापारी होगा, जो अपने व्यापार के प्रसंग में पश्चिमी भारत की बड़ी मण्डी से सम्बन्ध स्थापित करने पाया होगा। 'पूर्व' शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है परन्तु यह साधारणतया उस प्रान्त के लिए प्रयुक्त होता है जिसको हम मुख्य बंगाल कहते हैं और जो बनारस तक फैला हुआ है । यह व्यापारी उसी धनीधरा के 'कालीकोट' का निवासी होगा जिसे बिगाड़ कर हमने कलकत्ता कर दिया है।
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