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________________ प्रकरण - ११, प्राचीन खण्डहर [२४३ प्राधुनिक पट्टण का आधा परकोटा तो प्राचीन नगर से प्राप्त प्रस्तर-खण्डों से बना हुआ है और शेष कार्य को पूरा करने में, दामाजी की इस नगर का संस्थापक कहलाने की महत्वाकांक्षा के कारण, बल्हरों के प्रासादों, जलाशयों और मन्दिरों से जो कुछ मसाला मिला वह बिना सोचे-समझे लगा दिया गया है। साधारण-सा निरीक्षण करने के बाद ही मेरी यह निश्चित धारणा बन गई कि यदि वेशभूषा और लेखों का अध्ययन करने के लिए इन उत्कीर्ण प्रस्तर-खण्डों में खोज की जाए तो समय और परिश्रम कदापि व्यर्थ नहीं जा सकता।' इन प्रस्तर-खण्डों से बनी सदृढ नींव पर खड़ी हुई ईंटों की दोवार अदरख की रोटी जैसी अलग ही दिखाई पड़ती है और इस बात का प्रमाण उपस्थित करती है कि संस्थापक गायकवाड़ में राजपूत देव-पर्वत (Olympus) पर अनलकुण्ड से आविर्भूत जातियों के विशुद्ध देव-रक्त (Tutonic) का कोई अंश नहीं था। मैं यह कहना भूल गया था कि कालिका की छतरियां ईंटों की बनी हुई हैं, परन्तु मैंने यह नहीं देखा कि इनकी नींव भी पत्थर की है या क्या ? फिर भी, यही अधिक सम्भव है कि वे पत्थरों से ही भरी गई हैं क्योंकि इन बालकामय क्षेत्रों में क्षारीय अंश बहुत होता है, जो ईंटों को धीरे-धीरे नष्ट करके नींवों को खोखली कर देता है अतः यह प्रावश्यक है कि नींवें पत्थरों से ही भरी जावें। वास्तव में, जिन नगरों की इमारतें और दीवारें ईंटों से बनी हुई हैं उनके प्रकार को देख कर उन सभी के निर्माण का समय ज्ञात कर लेना सम्भव हो जायगा। प्रागरा शहर और इसकी दीवारें इस विषय में उदाहरण प्रस्तुत करती हैं, क्योंकि दो शताब्दी से कुछ ही अधिक प्राचीन होने पर भी किसी एक दीवार की भो नींव साबत नहीं है। अपनी अपनी शीघ्र नष्ट होने वाली सामग्री के अनसार प्रत्येक दीवार की सतह टूट-फूट कर धरातल के समीप आ गई है और एक क्षीयमाण ध्वंस मुख श्रेणी का दृश्य उपस्थित करती हुई यह बतलाती है, जैसा कि हिन्दू लोग कहा करते हैं, कि प्रकृति और कला में निरन्तर युद्ध चलता रहता है । काली अथवा 'नाश की देवी' के मन्दिर में और कोई उल्लेख ' मध्य भारत में एक हूण राजा के राज-चिन्हों की महत्त्वपूर्ण खोज के बारे में मैं अन्यत्र कह चुका हूं; यह खोज भैंसरोड़ को दीवारों परिश्रमपूर्ण अध्ययन के प्राधार पर की गई है, जो हिन्दुओं को अन्य इमारतों और नगरों की भांति तोड़ी-फोड़ी जाकर पनः बनाई गई हैं। २ 'बाल' Sand के लिए हिन्दू शब्द है; 'बालू का देश' बालुकामय प्रदेश हुना। ऐसा प्रतीत होता है कि इसी प्राधार पर उत्तरीय प्रागन्तुक जातियों के 'तत्त मुलतान का राय, ने इन क्षेत्रों पर विजय प्राप्त करके यहां बस जाने पर बल्ल' उपाधि ग्रहण करली होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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