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पश्चिमी भारत की यात्रा
श्रानन्द-दायक होती, परंतु घी की मण्डी देख कर ही मुझे संतोष हो गया क्योंकि इससे 'चरित्र' के इस कथन का पुष्ट प्रमाण मिल गया कि प्रत्येक पदार्थ के व्यापार के लिए पृथक् मण्डी बनी हुई थी ।
मुझे इस बात पर श्राश्चर्य होता है कि यह नगर सरस्वती नदी के किनारे नहीं बसा था, जो अब इससे कुछ ही दूरी पर है; परन्तु मेरा तो दृढता के साथ यह कहने को मन होता है कि कम से कम उत्तर-पूर्व में तो इसका प्रसार नदी तक था ही, और आधुनिक पाटण का उससे भी अधिक भाग इसके अंतर्गत था जितना कि गायकवाड़ के अनुवर्ती श्राज स्वीकार करना चाहते हैं । इस मत की ओर मेरा झुकाव कुछ तो नए नगर के परकोटे के भीतर के मन्दिरों को देख कर होता है और कुछ वहीं पर एक विशाल सरोवर के कारण जो अब भी बहुत अच्छी तरह सुरक्षित है और जिसकी खुदाई नगर से लगभग तीन मील की दूरी पर असम्भव हो जाती है । यहीं पर अहमदाबाद की तरफ एक और तालाब है, जो इससे भी अधिक सुन्दर है । यह मानसरोवर कहलाता है और अब बिलकुल सूखा पड़ा है। इसके विषय में एक कहानी है कि इसको एक ग्रोड अथवा ईंट बनाने वाले ने बनाया था; जैसे ही यह बन कर तैयार हुआ उसमें और उसकी स्त्री में झगड़ा हो गया । स्त्री ने उसको शाप दे दिया जिसके कारण पानी जैसे बहकर आया था उसी तेजी से रिस-रिस कर निकल गया। जिन पाठकों ने मेरे पूर्व ग्रन्थ में गोता लगाया है उनको झालरापाटण के एक ऐसे हो सुन्दर तालाब की कथा याद आई होगी, जो भी एक प्रोड की ही कृति है । वास्तव में बात यह है कि प्रोड या ओड़ शब्द यद्यपि ईंटें बनाने वाली जाति का ही द्योतक है, जैसे कुम्हार बर्तन बनाने वाली जाति का, परन्तु, प्राचीन काल में इस नाम की एक शक्तिशाली जाति थी । ओड़ीसा ( Orissa ) के राजा इसी जाति के थे जिनके शिलालेख भी वैसे ही अस्पष्ट अक्षरों में पाए जाते हैं जैसे इस प्रदेश में, जो हमारे वर्णन का विषय बना हुआ है ।
कालिका अथवा काली की छतरी के चबूतरे पर से ये सभी स्थान साफ़ दिखाई देते हैं; इनके चारों ओर का विरल वृक्षावली वाला मैदान धीरे धीरे लहराता हुआ सा प्रतीत होता । यह दृश्य सुदूर क्षितिज द्वारा परिसीमित है । दक्षिण की थोर जंगल घना और अधिक है, जो एकाकिनी समतलता से उत्पन्न हुई अरुचि को दूर करता है । आगे चलकर श्राबू को लघु-श्रेणियां भी इस कार्य में सहायक बन जाती हैं जिनकी काली चोटियां छत्रायमान स्वच्छ नील श्राकाश से स्पष्ट ही भिन्न प्रतीत होती हैं । सम्भवतः अरण हिलवाड़ा के निर्माण में प्रयुक्त सामग्री इन्हीं पहाड़ों से प्राप्त हुई थी
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