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________________ १ प्रकरण [ २४१ (Bedouin) की अपेक्षा, इसके आविष्कारक होने की घुमक्कड़ बेडोइन बहुत अधिक सम्भावना है। · ११; भारतीय स्थापत्य Jain Education International # अहिलवाड़ा के तोरण को काल और गायकवाड़ के लिए छोड़ने से पहले हमारे सामने यह प्रश्न आता है कि सर्वसंहारी विध्वंसों में वह बच कैसे गया ? विशुद्ध हिन्दू कंगूरों और व्यूह-रचना-सदृश परकोटे से युक्त उसकी एकांत छतरियां हिन्दू और तुर्क दोनों ही से अछूती रह गई इसका और कोई अभिप्राय हमारी समझ में नहीं आता - वह एक मात्र इसका अत्यधिक सौन्दर्य ही हो सकता है । मैं पहले ही कह चुका हूँ कि नीचे से ऊपर तक इस ढाँचे की पसलियाँ [ईंटें ? ] मात्र बच रही हैं, जिन पर ( चूने का ) किचित् भी लगाव नहीं रहा है; ये पसलियाँ जिन चौकोर खम्भों के सहारे टिकी हुई हैं उनको सीध में कोई अन्तर नहीं आया है और वे चुनावट के साथ वैसे ही पच्ची हो रहे हैं जैसे उस दिन थे जब खड़े किए गए थे । वे खम्भे सादा और तोरण के अनुरूप बने हुए हैं; उनका शिरोभाग विशुद्ध हिन्दू ढंग का है और साँकलों के गजरों से मण्डित है, जिनके बीच-बीच में जंजीर से वीरघण्ट अथवा युद्ध-घण्ट वैसे ही लटका हुआ है जैसे बाड़ौलो ( Barolli ) के खम्भों में है; यह वीरघण्ट जैनों (बल्हारा भी इसी मत के थे) के स्तम्भ निर्माण की बहुत प्राचीन एवं सामान्य सजावट का अंग है । तोरण के वृत्त खण्ड के मध्य में दोनों ओर कमल है । यहाँ पर यह भी बतला देना उचित होगा कि अहमदा बाद की बहुत सी प्रसिद्ध मसजिदों में भी इसी प्रकार की सजावट है । इससे यही सिद्ध होता है कि चन्द्रावती और अणहिलवाड़ा के अवशेषों से अहमद का नया नगर निर्माण करते समय मुसलमान लोग अपने प्रयोजन की सभी सामग्री इन नगरों में से ले गए थे । મ I मुझे इसका कारण ज्ञात न हो सका कि यहाँ के लोग तोरण से दक्षिण की और तीन मील तक के खण्डहरों का ही 'अन्हरवारा' नाम (जैसा कि वे बोलते हैं क्यों सीमित कर देते हैं ? यद्यपि अरब के जहाजियों के नाम पर बने हुए अथवा तगर (Tagara ) के बैंगनी सामान के चौक की तलाश अधिक सर्व • खानाबदोश और डेरे तम्बुओंों में रहने वाला अरब । अरब की एक घुमक्कड़ जाति, जो भेड़ें चरा कर जीवन निर्वाह करती थी । इन लोगों ने वीरे-धीरे अपना प्रभाव बढ़ा कर 'संगे-मूसा' वाले तीर्थ-स्थान पर भी अधिकार कर लिया था । 'The Outline of History ' --H.G. Wells, pp. 595-96 देखिये 'राजस्थान का इतिहास' जि. २, पु, ७१० । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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