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________________ मध्याय - १०; हिन्दुओं को सहिष्णुता [ २३५ और आगे उसने कहा है कि पूर्व-कथनानुसार बुद्ध का पूजन ही उस समय का प्रचलित धर्म था। इस सहिष्णुता के कारण व्यापारी मुसलमानों का राजधानी में प्रवेश होने के अतिरिक्त और भी परिणाम निकला; प्रायद्वीप के मध्य में जूनागढ़ का किला एक मुसलमान जागीरदार के अधिकार में था और जहाजी बेड़े की कमान एक हरमज़ (Hormus) निवासी के हाथ में थी। भविष्य में, इसी सहिष्णुता के वे विनाशकारी परिणाम भी निकले जिनका वर्णन किया जा चुका है। - ऊपर लिखे वृत्तान्त के आधार पर हम यहाँ एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकालते हैं जिसका यथास्थान प्रयोग हम उस समय करेंगे 'जब सौरों के प्रायद्वीप' में आगे चल कर यहां के धर्म, जातियों और चट्टानों पर उत्कीर्ण विचित्र अक्षरों के विषय में मन्तव्य प्रकट करने का अवसर पाएगा । वह निष्कर्ष यह है कि पश्चिमी भारत के राजपूत राजाओं और अरब, मिस्र तथा लाल-समुद्र के तटों के बीच ईसा से बहुत पूर्व ही विपुल व्यापार का सम्बन्ध स्थापित हो चुका था; और ईसवीय दूसरी शताब्दी में बल्हरों के चौरासी बन्दरगाहों में बसने वाले ग्रीक और रोमन आढ़तियों की साक्षी से हम स्वतन्त्रतापूर्वक इस बात पर विश्वास कर सकते हैं कि रोमन लोग चार लाख पाउण्ड जितना धन प्रतिवर्ष अपनी पूंजी के रूप में भारत को देते थे और टॉलमियों' (Ptolemies) के राज्यकाल में एक सौ पच्चीस भारतीय जहाजों के बेड़े एक बार में म्यूस (Myus), हरमस (Hormus) और बेरीनीस (Berenice) के बन्दरगाहों पर पड़े रहते थे; ये ही वे बन्दरगाह थे, जहाँ से मिस्र, सीरिया और रोम के प्रधान नगर में भी भारतीय पदार्थ पहुँचते थे और यहीं से मलाबार की कालीमिर्च सॅक्सन सप्त-राज्य (Sexon Heptarchy) • के समय में उस पादरी की गुफा में पहुंच पाई थी। इन पंक्तियों का अंग्रेजी रूपान्तर मेरे लिए श्रद्धेय डॉ. परमात्मा-शरणजी, दिल्ली विश्वविद्यालय, ने किया तदर्थ उनका आभारी हूं। उसी के आधार पर प्रानुमानिक अनुवाद ऊपर दिया गया है। 'मिस्र का राजवंश (ई० पू० ३२५ से ४० ई० तक) + ४४६ ई० से हवीं शताब्दी तक का समय । इस बीच में इंगलैण्ड सात राज्यों में विभक्त रहा था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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