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________________ २३४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा अहिलवाड़ा की बढ़ती हुई समृद्धि की सम्पुष्टि की है। वह इसका एक विलक्षरण कारण बताता है और वह है, हिन्दुओं की सहिष्णुता और मुसलिमों का सदाचार । " मुसलमानों की इज्जत बहुत थी; उनकी मसजिदें शहर में बनी हुई थीं, जहाँ दिन में पाँच बार नमाज पढ़ी जाती थी और वे (मेरे विचार से प्रणहिलवाड़ा के लोग ) अपनी प्रार्थनाओं में बल्हरों के दीर्घ जीवन की कामना करते थे ।" इसमें मूलराज के शासन के अन्तिम दिनों की ओर संकेत है, जो दशवीं शताब्दी के मध्य से अन्त तक के छत्तीस वर्षों का समय था । यद्यपि इसके थोड़े ही वर्षों बाद महमूद ने अपने बर्बर सैन्यदल के साथ ना कर इस देश को नष्टभ्रष्ट कर दिया था और नगरों की संपदा को समेट ले गया था जिससे कि गजनी' का वैभव बढ़ गया। फिर भी, अणहिलवाड़ा फोनिक्स (अपूर्व पौराणिक पक्षी) * के समान अपने भस्मावशेषों से पुनर्जीवित हो गया; और जब बारहवीं शताब्दी में सिद्धराज के राज्यकाल के अन्त और उसके उत्तराधिकारी कुमारपाल के शासन काल के प्रारम्भ में अल इदरिसी यहाँ आया तो उसे उसी वैभव और अपार समृद्धि के दर्शन हुए, जिसका वर्णन उसके पूर्ववर्तियों ने प्राठवों, नवीं और दशवीं शताब्दियों में किया था । यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस समृद्धि का मूल केवल व्यापार-व्यवसाय पर ही निर्भर था, जिसके स्रोत अपनी विविधता और महत्ता के साथ-साथ इतने सुदृढ़ भी थे कि महमूद के आक्रमण जैसी अस्थायी विपत्तियाँ उनको छिन्न-भिन्न नहीं कर सकीं । श्रल-इदरिसी का एक रोचक अनुच्छेद हम यहाँ उद्धृत करेंगे - " राज्य ग्रहण की प्रथा वंशपरम्परागत नियम के अनुसार प्रचलित है । उस राजा की महान् शक्ति के कारण लोग उसे बल्हारा ( वलभी का राजा ) कहने लगे हैं जिसका तात्पर्य्यं उसके राजत्व और साम्राज्यशक्ति का द्योतक है । वह राजाओं का राजा ( राजाधिराज ) है । 'नहरोरा' नगर में मुसलमान व्यापारी बड़ी संख्या में व्यापार करने आते हैं ।" " 9 यवु (यादव) राजपूतों का कहना है कि इस नगर को उनके पूर्वज राजा गज ने बसाया था । (देखिए - राजस्थान का इतिहास, जि० २, पृ०१२२) २ कहते हैं कि यह पक्षी तेरह हज़ार वर्षों के लगभग जीवित रहता है, फिर अपने घोंसले में अपने प्राप जल मरता है । उसकी भस्म से एक नया फोनिक्स उत्पन्न हो जाता है । Regnum hoc hereditario jure possidetur a regibus suis, qui omens uno invariabli nominee vocantur Balhara, quod significat Rex Regum.Ad urben Narhroara multi se conferunt mercatores Moslemanni ad negotiandum. ( चालू ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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