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प्रकरण - १०; अहिलवाड़ा का व्यापार [ २३३ में द्वितीय शताब्दी में कनकसेन से लेकर पांचवीं शताब्दी में शीलादित्य के समय तक, जब कि इण्डोसीथिक आक्रमणकारियों द्वारा वलभी का नाश हुआ, गुजरात में राज्य किया था।
मैंने अन्यत्र अपना मत प्रकट किया है कि भारत की एक अति प्राचीन और शक्तिशाली जाति परमार है, जिसको पँवार बोलते हैं (उज्जैन और धार के पूर्वकालीन राजा)। इस जाति के नाम के कारण उसका अपभ्रष्ट रूप एक व्यक्तिवाचक नाम बन गया जिससे प्रागस्टस (Augustus) से पत्रव्यवहार करने वाले (इस वंश के) राजा और सिकन्दर के विरोधी राजा दोनों के नामों में भ्रम उत्पन्न हो गया है । मैं यह भी सिद्ध कर सकता हूँ कि राणा का सर्वोच्च पद उज्जैन के इसी वंश से सम्बन्धित था और थार-स्थित उमरकोट का पदच्युत सोढ़ा-जातीय राजा अब भी इसको धारण करता है । यह परमारों का एक विशेष उप-जिला था, जो किसी समय सतलज से समुद्रपर्यन्त पश्चिमी भारत के एकाधिकारी शासक थे । मेवाड़ के प्राचीन राजाओं का पद 'रावल' था; बाद में जब तेरहवीं शताब्दी में मरदेश की राजधानी मण्डोर पर विजय प्राप्त की तो उन्होंने 'राणा' पद ग्रहण कर लिया।
दूसरी शताब्दी में एरिअन (Arrian) द्वारा वर्णित लाल-समुद्र के बन्दरगाहों के लिए धनवृद्धि के साधनभूत बल्हरों की राजधानी से, जिस पर बॅरिगाज़ा (Barygaza) की स्थिति निर्भर थी, व्यापार की आगे तुलना करना अनावश्यक है; और इससे भी कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता कि राजधानी अणहिलवाड़ा थी अथवा सूरोई (Suroi) प्रायद्वीप के समुद्रीय तट पर लार देश में स्थित देवपट्टन, क्योंकि राजवंश एक ही था। 'गुजरात में बल्हरा नाम से नहरवाला राजधानी में राज्य करने वाले सम्राट्, उनके विशाल राज्य, धन और सभा-वैभव का' विस्तार सहित जो वर्णन अरब यात्रियों ने किया है वह ठोक ही है; परन्तु, हम फिर कहेंगे कि यह व्यवसाय-केन्द्र इस (राज्य) के संस्थापक की कृति नहीं कहा जा सकता वरन् इसकी अन्तःस्थलीय स्थिति इस बात का दृढ़ प्रमाण उपस्थित करती है कि यह व्यापार बहुत प्राचीन काल से चला पा रहा था और उस प्रतिकूल अवस्था से भी सामान्य व्यापारिक यातायात में कोई अन्तर नहीं पाया, जिसके कारण यहाँ के बाजार समृद्धि से परिपूर्ण थे। इस विषय में मैं मसूदी (Masaudi) का एक महत्त्वपूर्ण उद्धरण उपस्थित करूँगा जो दशवीं सताब्दी में अणहिलवाड़ा आया था; यह उस समयं के आसपास की बात है जब कि यह राज्य चावड़ों से चालुक्यों के अधिकार में आ गया था। उसने भी अपने पूर्ववर्ती लेखकों द्वारा वर्णित 'बाल-का-रायों' के वैभव और तत्कालीन
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