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प्रकरण ११
अहिलवाड़ा के भग्नावशेष ; उनका द्रुतगति से गायब होना; स्थापत्य के केवल चार नमूने; सारासेनिक (Saracenic) मेहराब के नमूने ; इसका आविष्कार; हिन्दू-अणहिलवाड़ा के अवशेषों का अहमदाबाद और आधुनिक पाटण के निर्माण में उपयोग; नए नगर में प्राचीनताएं; शिलालेखों और ग्रंयभण्डार को मुसलमानों से रक्षा; जनों की खरतर-शाखा की सम्पत्ति, ग्रन्थालय के ग्रंथ और विस्तार; जैनों के अन्य ग्रंथ-भंडार, जिनकी खोज नहीं हुई; वंशराज-चरित्र ।
जिसका धार्मिक ग्रन्थों की भविष्यवाणी में विश्वास न झे ऐसा मनुष्य जब बल्हरों की इस एकदा गौरवमयी राजधानी में जायगा तो वहाँ उसे अतीत के इस विशाल नगर में, जहाँ 'चौरासी चौपड़ें और चौरासी बाजार थे', यह देखने को मिलेगा कि कैसी सुगमता से इतनी बड़ी बड़ी राजधानियाँ खड़ी की जाती थीं और उसी तरह नष्ट करके छोड़ दी जाती थीं। उस (दर्शक) को वहाँ के 'सोज़रों' (राजाओं) के प्रासादों को घेरने वाले परकोटे की ऊंची-ऊंची दीवारों के ही अवशेष दिखाई देंगे; दूसरी इमारतों की दीवारों का तो 'बैबिलोन'२ की दीवारों की तरह यह हाल है कि एक पत्थर पर दूसरा पत्थर भी न मिलेगा। पूर्व के देशों में जब बरबादी शुरू होती है तो वहाँ पर धार्मिक भवनों, मन्दिरों, बावड़ियों और पानी के टांकों के अतिरिक्त कुछ नहीं बच रहता।।
वहाँ जाते ही नगर के मुख्य द्वार के पास नीचे बने हुए काली के मन्दिर से देखने पर जो पहली वस्तु दृष्टि को प्राप्ति करती है वह 'काली कोट' अथवा अन्तरंग नगर का अवशेष है, जिसमें दो मज़बूत बुर्जे बनी हुई हैं; वे काली की छतरियाँ कहलाती हैं । इन छतरियों पर से उस परकोटे पर दृष्टि दौड़ाई जा सकती है, जो एक भोंडे से द्वि-समानान्तर चतुर्भुज के रूप में लगभग पाँच मील के गिरदाव में फैला हया है। इसके बाहर चारों ओर मुख्यतः पूर्व और दक्षिण में उप-नगर बसे हुए थे जिनकी सुरक्षा के लिए बाहरी परकोटा बना होगा। वहाँ के दृश्य का अनुमान नीचे दिए हुए अधूरे से खाके से लगाया जा सकता है।
१ रूस के बादशाहों । २ एशिया के सुप्रसिद्ध बॅबिलोनिया साम्राज्य का युफ्राटीस नदी पर स्थित नगर । सिकन्दर
की मृत्यु यहीं हुई थी। बाद में यह नष्ट हो गया। इसके अवशेषों की खुदाई निरन्तर हो रही है। --N.S.E. Pp98-99 |
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