SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा कि 'बाल-का-राय' की पदवी ही निःशेष हो गई थी, राजधानी बना रहा। विभिन्न लेखकों के समानान्तर-प्रमाणों के अतिरिक्त इन राजाओं की महानता उनके सिक्कों से भी प्रमाणित होती है, जो मुझे कच्छ और प्राचीन उज्जैन के खण्डहरों में प्राप्त हुए हैं। इन सिक्कों पर बौद्ध अक्षर पाए जाते हैं क्योंकि इस धर्म से बल्हरों का घनिष्ठ एवं अविच्छेद्य सम्बन्ध था। इन राजाओं की व्यापारिक-महानता पर सर्व प्रथम दृष्टि निक्षेप करने के लिए हम 'पॅरिप्लुस' के कर्ता के प्राभारी हैं, जो इन्हीं के राज्य में बॅरिगाजा (Barygaza), जिसका शुद्ध रूप भृगुकच्छ (Brigu•gocha), प्राधुनिक रूप बरवच (Berwuch) और अंग्रेजी बरीच (Baroach) है, में रहता था। यह नगर तब भी 'चौरासी बन्दरगाहों' में से एक था जब कि राजधानी अणहिलवाड़ा में स्थापित हो चुकी थी। टॉलमी ने भी बालेकूरों (Baleo-Kouras) के राज्य का वर्णन किया है यद्यपि 'हिप्पोकुरा" (Hippocura) हमारे समझ में नहीं पाता, जिसको वह राजधानी का नाम बतलाता है। यह एक ऐसा नाम है जिस पर हमें बॉइण्टिअम (Byzentium) से भी अधिक आश्चर्य होता है, जिसे उसने वलभी के स्थान पर ला रखा है। एरिपन से हमें लारिक (Larica) निवासियों की समुद्री डाके डालने की आदतों का सूचन मिलता है; निस्सन्देह, वे इसी कारण सिद्धराज के समय में देश से बाहर निकाले गए थे। एरिअन के दिनों, अर्थात् दूसरी शताब्दी, से पाठवीं शताब्दी में अणहिलवाड़ा के संस्थापक के समय तक और दशवीं शताब्दी में दूसरे राजवंश के अन्तिम राजा के राज्यकाल तक राज्य की आन्तरिक दशा कुछ भी रही हो परन्तु उसके (Arrian के) द्वारा वणित व्यापारिक अवस्था में कोई अन्तर या न्यूनता नहीं पाई थी। ग्रीस के प्रतिनिधि द्वारा दूसरी शताब्दी में वणित पदार्थ पाठवीं और बारहवीं शताब्दियों में भी यहाँ की विशाल मण्डी के "चौरासी बाजारों में भरे रहते थे । कच्छ और खम्भात की खाड़ियों के बन्दरगाहों से समान दूरी पर सरस्वती के किनारे पर उसकी (राजधानी की) स्थिति होने के कारण अफ्रीका, मिस्र और अरब के सभी पदार्थ उसके उत्संग में आ ठहरते थे। उसका प्रधान बन्दरगाह गजना (Gujna) अथवा खम्भात (Cambayet) सौ मील से अधिक दूरी पर नहीं था , कोल्हापुर और नासिक, ये ही दोनों ऐसे स्थान हैं जिनमें से किसी एक का इसके साथ ऐक्य हो सकता है। Mc Crindle's 'Ancient, India as described by Ptolemy.' - notes by S. Majumdar; p. 385 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy